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________________ ७४ समाधिमरण इन दोनों ही प्रकार के मरण के निर्दारिम एवं अनिरिम जैसे दो उपविभाग हैं।५३ नि रिममरण स्थान से मृत शरीर को बाहर ले जाना या हटा देना। अनि रिम- मरण स्थान से मृत शरीर को बाहर नहीं लाना, उसे वहीं पड़े रहने देना। श्वेताम्बर परम्परा में समवायांग तथा दिगम्बर (यापनीय) परम्परा में भगवती आराधना में मरण के विविध प्रकार का उल्लेख मिलता है। दोनों ही परम्पराओं से सम्बन्धित ग्रन्थों में मरण के सत्तरह-सत्तरह प्रकारों का विवेचन किया गया है। समवायांग के अनुसार५४- (१) अवीचिमरण, (२) अवधिमरण, (३) आत्यन्तिकमरण, (४) बलन्मरण, (५) वशार्त्तमरण, (६) अन्तः शल्यमरण, (७) तद्भवमरण, (८) बालमरण, (९) पंडितमरण, (१०) बालपंडितमरण (११) छद्मस्थमरण, (१२) केवलीमरण, (१३) वैहायसमरण (१४) गृद्धस्पृष्टमरण, (१५) भक्तप्रत्याख्यानमरण, (१६) इंगिनीमरण, (१७) पादपोपगमनमरण । भगवती आराधना के अनुसार५५ - (१) अवीचिमरण, (२) तद्भवमरण, (३) अवधिमरण, (४) आद्यन्तमरण, (५) बालमरण, (६) पंडितमरण, (७) आसण्णमरण, (८) बालपंडितमरण, (९) सशल्लमरण, (१०) बलायमरण, (११) वसट्टमरण, (१२) विप्पाणसमरण, (१३) गिद्धपुट्ठमरण, (१४) भक्तप्रत्याख्यानमरण, (१५) इंगिनीमरण, (१६) प्रायोपगमनमरण और (१७) केवलीमरण। समवायांग एवं भगवती आराधना में मरण के इन सत्तरह प्रकारों में सामान्य तौर पर समानता ही दृष्टिगोचर होती हैं। लेकिन कहीं-कहीं कुछ प्रकारों में नामों व उनकी क्रम संख्या में कुछ विभिन्नता भी दिखाई देती है। उदाहरणस्वरूप भगवती आराधना में अवधिमरण के दो स्पष्ट विभाजन (१) देशावधिमरण और (२) सर्वावधिमरण मिलते हैं। लेकिन समवायांग में अवधिमरण का इस तरह स्पष्ट विभाजन नहीं है। हां ! यह और बात है कि इन दोनों तरह के मरणों के अन्तर का स्पष्टीकरण भी समवायांग में अवश्य मिलता है। समवायांग में छद्मस्थमरण का उल्लेख है, लेकिन भगवती आराधना में इस नाम के मरण का विवरण नहीं मिलता है। भगवती आराधना में आसण्णमरण की चर्चा है, जिसका उल्लेख समवायांग में नहीं है। इन विभिन्नताओं के अतिरिक्त कोई अन्य अन्तर मरण को लेकर इन दोनों ग्रन्थों में स्पष्टत: नहीं मिलता है। समवायांग एवं भगवती आराधना के आधार पर मरण के इन प्रकारों का विवेचन निम्न है __(१) अवीचिमरण - आयु के अनुभव (उदय) को जीवन कहते हैं। आयु का उदय प्रतिक्षण होता रहता है। इसी प्रकार आयु के क्षीण या भंग को मरण कहते हैं। आयु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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