SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ समाधिमरण प्राप्त करना और अंत में मृत्यु को प्राप्त करना यही क्रम अनादि काल से चला आ रहा है। इस क्रम को तोड़ पाना या इससे मुक्त हो जाना संभव नहीं है। पाश्चात्य विचारकों में जैक्यूज कोरोन (Jacques Choron) का नाम मृत्यु सम्बन्धी अध्ययनों के लिए विख्यात है। इन्होंने मनुष्य और मृत्यु के सम्बन्धों पर आधारित एक पुस्तक (Death and Modern Man) लिखा है, जिसके अनुसार सभी जीव मरणशील है।१२ मृत्यु से बचना संभव नहीं है। विजमैन ने जन्म और मृत्यु को दो भिन्न प्रक्रिया माना है। जहाँ जन्म जीवन का प्रारम्भ है वहीं मृत्यु उस जीवन का अंत। मृत्यु जीवन के समान ही उपयोगी और अनिवार्य है। अपने मत के समर्थन में इन्होंने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि जीवन के लिए मृत्यु प्राकृतिक रूप से अनिवार्य है एवं मृत्य जीवन के अन्त या त्याग का नाम नहीं है।१४ __ पाश्चात्य विचारकों में क्लाइड वर्नार्ड (Clayde Bernard) का नाम मृत्यु और जीवन के अध्ययन के साथ व्यापक रूप से जुड़ा हुआ है। इन्होंने इस विषय पर बड़ी गहराई से अध्ययन किया है। अपने अध्ययन के सार रूप में मृत्यु और जीवन में सम्बन्ध स्थापित करते हुए इन्होंने कहा है कि जीवन मृत्यु से अनिवार्य रूप से जुड़ी है।'' तात्पर्य यह है कि मृत्यु जीवन की अपरिहार्य आवश्यकता है। मृत्यु के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्रत्येक जीव अपनी स्थिति में निरन्तर परिवर्तन करता रहता है। वह निरंतर जीवन से मृत्यु की ओर अग्रसर होता रहता है और अन्त में मृत्यु को प्राप्त होता है।१६ ___मि० कैरेल (Carrel) ने मृत्यु की अनिवार्यता पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि व्यक्ति मृत्यु के पंजे से कभी नहीं बच सकता है। इनके अनुसार मृत्यु का कारण चाहे बाह्य हो या आन्तरिक, चाहे वह जीवन से जुड़ा हो या बाह्य आकस्मिक घटनाओं से, व्यक्ति जब तक जीवन से जुड़ा हुआ है, वह मृत्यु से नहीं बच सकता है। वह मृत्यु पर. कभी भी विजय नहीं प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति अपनी सभी चैत्तसिक लक्षणों, यथागतिशीलता, चंचलता, सुन्दरता, कुरूपता, लोभ, दुःख-सुख, माया, मोह आदि का मूल्य जीवनत्याग करके चुकाता है। व्यक्ति के ये सभी लक्षण उसकी मृत्यु के साथ समाप्त हो जाते हैं। विलियम शर्लाक के अनुसार मृत्यु सभी दुःखों का राजा है।१८ व्यक्ति साधारण दु:खों से डरा सहमा रहता है। मृत्यु तो दु:खों का राजा है, अत: व्यक्ति इससे और ज्यादा भयभीत रहता है। मृत्यु के कारण डरते रहना मृत्यु की उपस्थिति का बोधक है। मृत्यु व्यक्ति के जीवन का अन्त कर देती है और जीवन का अन्त सामान्य रूप से किसी को ग्राह्य नहीं होता है। यही कारण है कि मृत्यु से व्यक्ति डरता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy