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________________ समाधिमरण रचयिता को लेकर विवाद का जो भी विषय रहा हो अधिकतर विद्वानों ने इसके रचयिता वट्टकेराचार्य को ही माना है। सम्पूर्ण ग्रन्थ बारह अधिकारों में विभाजित है-(१) मूलगुण, (२) बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तव, (३) संक्षेपप्रत्याख्यान, (४) समाचार, (५) पंचाचार, (६) पिण्डराद्धि, (७) षडावश्यक, (८) द्वादशानुप्रेक्षा, (९) अनगारभावना, (१०) समयसार, (११) शीलगण और (१२) पर्याप्ति। बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तव नामक अधिकार में समाधिमरण का विवरण मिलता है। इसमें मरण के तीन भेदों- बालमरण, बालपंडितमरण और पंडितमरण का उल्लेख किया गया है, जिसमें समाधिमरण के स्वरूप, समाधिमरण के प्रति क्षपक का उत्साह, उसकी पात्रता, आदि विषयों पर विस्तृत विवरण है। समाधिमरण के महत्व को दिखाने हुए उसे निर्वाण-द्वार कहा गया है।" मुख्य रूप से समाधिमरण पर चर्चा करनेवाले प्राकृत ग्रन्थ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक अन्तकाल प्रकीर्णक या बृहदातुरप्रत्याख्यान के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृत में इसे आउरपच्चक्खाण पइण्णय कहते हैं। इसके रचयिता वीरभद्र हैं।" यद्यपि इस प्रकीर्णक में गाथाओं की कुल संख्या मात्र ७१ है, तथापि यह समाधिमरण की चर्चा के लिए पूर्ण है। इसमें मृत्यु के दो स्वरूप बालमरण एवं पंडितमरण पर विस्तार से वर्णन मिलना है। पंडितमरण की प्राप्ति के लिए ६३ प्रकार की साधना का उल्लेख है। इसमें बालमरण के स्वरूप, दोष आदि का भी विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है।" समाधिमरण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उसे मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है। इसमें बालपंडितमरण का भी वर्णन मिलता है। इस ग्रन्थ के अनुसार बालमरण करने वाला जीव संसार चक्र में पड़ जाता है, जबकि पंडितमरण करनेवाला जीव संसार के भवचक्र से छूट जाता है अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर लेता है। महापच्चक्खाण महापच्चक्खाण या महाप्रत्याख्यान १४२ गाथाओं का छोटा सा ग्रन्थ है। सम्पूर्ण गाथाओं में प्रत्याख्यान (त्याग) पर बल दिया गया है। प्रत्याख्यान पर बल देने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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