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________________ ३४ समाधिमरण देते हए उन्होंने यह कहा है कि उसने आत्महत्या करके अपने प्रभु यीश के प्रति विश्वासघात किया।." ईसाईयों के प्रसिद्ध चर्च सन्तपाल के पादरी दोने (Donme) की दृष्टि में आत्महत्या वह महापाप है जिसके समान दृसरा कोई अन्य पाप नहीं है। सन्त मोन्टेन (St. Montaigne) के अनुसार आत्महत्या एक ऐसा कत्य है. जिसके प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं रखनी चाहिए। - थॉमस . ववना ने आत्महत्या को एक विश्ववासघात माना है। उनके अनुसार आत्महत्या करनेवाला व्यनि अपने स्वामी (ईश्वर) के साथ विश्वासघात करता है। वह ईसा मसीह के साथ विश्वासघात करता है। वह अपने स्वामी (ईश्वर) तथा प्रभु (ईसा मसीह) के साथ विश्वासघात करके स्वयं अपने भाग्य के साथ विश्वासघात करता है। अर्थात् आत्महत्या करनेवाला व्यनि, अपने विश्वास का हनन करता है और इस लोक में दु:ख पाने के साथ-साथ वह परलोक में भी दुःख पाता है। ____ फ्रांस के शासक लुई नवम् ने आत्महत्या की समस्या पर अपने विचार प्रकट करते हुए इसे समाज के लिए एक अभिशाप बताया और इसके विरूद्ध एक कानून बनाया, जिसका मुख्य उद्देश्य आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना था। इस कानून के अनुसार आत्महत्या करनेवाले व्यक्ति की सारी चल-अचल सम्पनि गज्य सम्पनि घोषित कर दी जाती थी। बहुत से अन्य यूरोपीय राज्यों ने क्रांस के आत्महत्या विरोधी कानून का अनुसरण किया। वहाँ के शासकों ने भी इसी तरह के मिलने-जुलन कानून अपने राज्यों में लागू किये। बाद में फ्रांस के लई चौदहवे ने आत्महत्या विरोधी कानून का पालन पूरी शक्ति से करवाया तथा इस कानून को नहीं माननेवाला के साथ कड़ाई का व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया। स्कॉटलैण्ड में भी आत्महत्या को महापाप कहा गया । आत्महत्या करनवाला का पड़ासा का हत्यारा कहकर आत्महत्या के विरुद्ध एक व्यापक जन अभियान छेड़ा गया। प्रशासन द्वारा आत्महत्या के विरुद्ध व्यापक कानून बनाया गया तथा इनका कठोरता से पालन करवाने का निर्देश दिया गया। इंग्लैण्ड में भी इसे महा अपराध की श्रेणी में रखते हुए महापाप की संज्ञा देने के साथ-साथ आत्महत्या करनेवाले व्यक्ति की सम्पूर्ण सम्पत्ति दण्डस्वरूप राजकोष में जमा कर ली जाने लगी। इसके अलावा दण्डस्वरूप अन्य कई तरह के नियम अपनाए गये । १५९८ ई० में एक औरत जल में डूबकर आत्महत्या कर ली । उसके शरीर को जलाशय से निकाल कर पुनः उसके लाश को फाँसी के तख्ते पर चढ़ाया गया । ऐसा मात्र दण्ड देने के लिए नहीं किया गया होगा, बल्कि इसके पीछे यही भावना रही होगी कि व्यक्ति आत्महत्या करने से बचे, क्योंकि यह इतना बड़ा अपराध है कि मरने के बाद भी मृतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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