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समाधिमरण
आतुर है। इसके साथ ही उसके आत्ममरण के पीछे कोई न कोई उद्देश्य अवश्य है। यद्यपि बिना उद्देश्य के कोई भी कार्य नहीं किए जाते हैं, तथापि आत्ममरण के लिए लौकिक बातों से सम्बन्धित कोई उद्देश्य है तो वह ठीक नहीं है, क्योंकि इससे व्यक्ति को आत्मवघ के दोष लगने की सम्भावना रहती है। इस तरह जहाँ बौद्ध परम्परा शस्त्र द्वारा की गई आत्महत्या का समर्थन करती है, वहीं जैन परम्परा उसे अस्वीकार करती है।
___ बौद्ध परम्परा और जैन परम्परा में वर्णित मृत्युवरण का अन्तर उनकी विधियों को लेकर भी है। यह बात ठीक है कि समाधिमरण लेनेवाले व्यक्ति के मन में न तो मरने की आकांक्षा होती है और न ही जीने की। लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि बौद्ध परम्परा में जो शस्त्रघात किया जाता है उसके पीछे मात्र मृत्यु की ही आकांक्षा होती है। अत: यह आक्षेप कि शस्त्रघात व्यक्ति शीघ्रमरण के लिए करता है, उचित नहीं है। क्योंकि पूर्व में हमने देखा है कि बौद्ध ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि सांसारिक माया, मोह से विरक्त होकर व्यक्ति अगर शस्त्र की सहायता से अपना घात करता है तो वह निर्वाण को प्राप्त करता है। अत: शस्त्रघात की सहायता से किया जानेवाला प्राणान्त निर्वाण प्राप्ति के लिए भी हो सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि जैन धर्मावलम्बी भी जैनधर्म में वर्णित अनशन को ही अपनाकर अपना प्राणान्त करें। कारण वहाँ भी कुछ प्रसंग ऐसे मिलते हैं जिनमें देहपात करने के लिए अनशन के अतिरिक्त अन्य विधियों को अपनाया जाता है।
जैन मतावलम्बी बौद्ध मतावलम्बी पर यह आक्षेप लगाते हैं कि वे लोग शस्त्र की सहायता से जो मरण करते हैं, वस्तुत: वे निर्वाण प्राप्ति के लिए नहीं वरन् अपने मन के आवेगों को शान्त करने के लिए ऐसा करते हैं। देखा जाए तो प्रकारान्तर से वे आत्महत्या ही करते हैं। उनका यह आक्षेप ठीक नहीं है, जिस प्रकार आत्महत्या के लिए जैनधर्म में असहमति व्यक्त की गई है तथा जीविताशंसा और मरणाकांक्षा को समाधिमरण का दोष बताया गया है, उसी प्रकार बौद्ध धर्म में भी आत्महत्या को दुःख का कारण मानते हुए इसका निषेध किया गया है।
___ समाधिमरण लेनेवाले व्यक्ति का अनशन उसके देह पर से ममत्व हटाने के भाव को प्रदर्शित करता है तथा कैवल्य प्राप्ति में सहायक माना जाता है। इसी प्रकार बौद्धों का प्राणत्याग भी निर्वाण प्राप्ति के लिए ही किया जाता है। इस दृष्टि से बौद्ध धर्म में: जो प्राणत्याग है वह जैनधर्म के समाधिमरण के समान ही है, क्योंकि दोनों ही परम्पराओं का यह देहत्याग निर्वाण प्राप्ति के निमित्त ही किया जाता है। बौद्ध साहित्यों में मिलने वाले बहुत से आत्ममरण के उदाहरण इसकी पुष्टि करते हैं। अत: बौद्ध धर्म में शस्त्रघात
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