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समाधिमरण और अन्य धार्मिक परम्पराएँ
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रहता है कि उसने जो कुछ इस जीवन में नहीं प्राप्त किया है वह अगले जीवन में अवश्य प्राप्त कर लेगा । " जुंशी नामक एक और विधि है जिससे आत्ममरण करनेवाले व्यक्ति को यह विश्वास रहता है कि उसका मालिक पुनः उसे अगले जन्म में मिल जाएगा। आत्ममरण करने के लिए प्रयुक्त उक्त समस्त प्रकार किसी न किसी उद्देश्य प्राप्ति से सम्बन्धित हैं। अधिकांश विधियों में आत्ममरण के लिए बाह्य विधियों का सहारा लिया जाता है। अतः मरण प्राप्त करने की ये सभी विधियाँ समाधिमरण से भिन्न हैं। इस तरह से हम यदि बौद्ध परम्परा में मृत्युवरण करने के लिए अपनायी गयी विधियों पर ध्यान दें, तो निम्नलिखित बातें हमारे सामने उपस्थित होती हैं
(१) अधिकांश अवस्थाओं में मृत्युवरण के लिए बाह्य विधियों या उपकरणों की सहायता ली जाती है।
(२) बाह्य वस्तुओं में फाँसी लगाकर, अस्त्र द्वारा अंग-भंग करके, पहाड़ सं कृदकर. जल में डूबकर तथा आग में झुलसकर आदि विधियों की सहायता से प्राणान्त किया जाता है।
फिर भी यदि बौद्ध परम्परा में उपलब्ध आत्ममरण के उदाहरणों एवं बुद्ध द्वारा उनमें से कुछ पर दी गई सहमति पर विचार किया जाए तो बहुत ही कम ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जो समाधिमरण के तुलनीय हैं। कहने का अर्थ यह है कि सामान्यतः बुद्ध ने इच्छित मृत्युवरण के लिए अपनी सहमति नहीं दी है, फिर भी परिस्थितिवश उन्होंने इसका समर्थन किया है तथा कुछ निर्देश भी दिए हैं। संयुत्तनिकाय में उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति अपने को किसी बाह्य उपकरण की सहायता से मारता है और उस स्थिति में यदि वह सांसारिक माया, मोह से विरत रहता है तो उसे आत्मवध का दोष नहीं लगता है। वह निर्वाण का अधिकारी होता है और सांसारिक कष्टों से उसे मुक्ति मिल जाती है। "
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनधर्म में वर्णित समाधिमरण तथा बौद्ध धर्म में प्रतिपादित आत्ममरण की परम्परा में मूलभूत अन्तर है। जैन परम्परा के विपरीत बौद्ध परम्परा में मृत्युवरण के लिए बाह्य विधियों का सहारा लिया जाता है। जैन आचार्यों ने आत्ममरण के लिए बाह्य विधियों का निषेध किया है। इसके पीछे उनका यह नर्क है कि इस तरह से जो मरण किया जाता है उसमें अवश्य ही किसी तरह की आकांक्षा रहती है, क्योंकि यदि किसी तरह की आकांक्षा नहीं रहती है तो फिर शस्त्र के द्वारा क्यों तत्काल मृत्यु का प्रयास किया जाता है? अपने अध्ययन के दौरान मैंने यह स्पष्ट रूप से देखा है कि अधिकतर स्थिति में व्यक्ति किसी न किसी बाह्य विधि की सहायता से शीघ्र मरण को
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