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समाधिमरण
समय बाद बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया राजपूत योद्धाओं ने समरभूमि में अपनी वीरता और बहादुरी का परिचय दिया। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक दुश्मनों के फौज से जमकर लड़ते रहे। जब उन्हें यह अनुभव होने लगा कि अब उनकी पराजय सुनिश्चित है तब इस आशय का संकेत किले में गुप्त रीति से पहुँचाया गया। इस संकेत के आधार पर युवराज अर्जुन हर की माता कर्णावती के नेतृत्व में युवराज की बहनें तथा १३ हजार राजपूत स्त्रियों ने जौहर के माध्यम से आत्मदाह किया।२४
सम्राट अकबर के मारवाड़ अभियान के समय भी राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया था। अकबर के इस अभियान का वर्णन इतिहासकारों ने इस प्रकार किया है- जब अकबर ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तथा किले की घेराबंदी को तंग करना शुरू किया उस समय किले में जीवनोपयोगी सामग्री का अभाव होने लगा। ऐसे समय में आठ हजार राजपूत वीरों ने एक साथ मिलकर पान का अंतिम बीड़ा खाया और भूमि में अंतिम संघर्ष हेतु जाने को उद्यत हुए। किले का दरवाजा खोल दिया गया। सभी तहर की उपयोगी वस्तुओं को नष्ट किया जाने लगा। राज्य के नवरत्न, पाँच रानियाँ, उनकी पुत्रियाँ, दो नवजात शिशु तथा परिवार एवं सम्भ्रांत कुलों की महिलाओं ने एक साथ अग्निकुंड में जलकर अपने प्राणों का उत्सर्ग किया।३५
__ अगर हम जौहर की इन घटनाओं और कथानकों की पृष्ठभूमि में झांककर देखें तो हमारे समक्ष कुछ ऐसे बिन्दु उपस्थित होंगे जो इनके पीछे छिपी हुई भावनाओं को समझाने के लिए आधारबिन्दु का काम कर सकते हैं। यहाँ कुछ विवेच्य बिन्दुओं को प्रस्तुत किया जा रहा है जिसकी आशंका से स्त्रियाँ जौहर करके अपने देह का त्याग करती थीं। ये बिन्दु हैं -
१. शील भंग की आशंका के कारण, २. गुलामी की दासता से बचने के लिए ३. अपमान की पराकाष्ठा से मुक्ति पाने के लिए, ४. धर्म भ्रष्टता से बचने के लिए ५. प्राणोत्सर्ग के अतिरिक्त अन्य कोई और मार्ग शेष नहीं रहने की स्थिति में।
वस्तुत: उपर्युक्त सारे तथ्य इच्छाओं द्वारा संचालित माने जा सकते हैं तथा इनके पीछे भावनात्मक विचारबिन्दु भी छिपे हो सकते हैं। इस प्रकार जौहर को इच्छितमरण का ही एक रूप माना जा सकता है, जो तीव्र भावनात्मक आवेग के वशीभूत होकर ग्रहण किया जाता है। परन्तु उस भावनात्मक आवेग में भी धर्म और शीलरक्षा की भावना ही प्रमुख है। प्रायः इसी भावावेग की प्रधानता के कारण जौहर की प्रक्रिया को प्रशंसनीय दृष्टि से देखा जाता रहा है, क्योंकि भारतीय चिन्तन में धर्म की बेदी पर देहत्याग को सदैव
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