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समाधिमरण एवं ऐच्छिक मृत्युवरण
२०१ यह राजपूताने में विकसित हुआ, लेकिन मुगल सल्तनत के विघटन के बाद इस प्रथा , ... का भी अन्त हो गया।
___ जहाँ तक जौहर के ऐतिहासिक साक्ष्य की बात है तो इस दिशा में चित्तौड़ के राणा रतनसिंह की रानी पद्मिनी के साथ अन्य स्त्रियों द्वारा किया गया जौहर काफी प्रसिद्ध है। यद्यपि यह कथानक विभिन्न तरह के विवादों से परिपर्दो माना जाता है तथा इतिहासकार इस पर समान मत नहीं रखते हैं, लेकिन उसे जौहर की भावना को समझनेवाला एक जीवन्त ऐतिहासिक साक्ष्य माना जा सकता है। रानी पद्मिनी को अपनी कथानक का आधार बनाकर मलिक मुहम्मद जायसी ने १५४० ई० में पद्मिनी नामक महाकाव्य लिखा। इस महाकाव्य में पद्मिनी के जीवन की यह कथा लिखी गई है कि दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी उसे पाने के लिए ही चित्तौड़ गया था। इस महाकाव्य में रानी पद्मिनी के जीवन के साथ जुड़ी विभिन्न घटनाओं का हृदयस्पशी वर्णन किया गया है। इसमें अलाउद्दीन की कूटनीति, राजपूत योद्धाओं के शौर्य एवं पराक्रम तथा पद्मिनी के आत्मदाह का जीवन चित्र खींचा गया है।३०
- अधिकांश इतिहासकार इस मत का प्रतिपादन करते हैं कि पद्मिनी के रूप की महक ही अलाउद्दीन के चंचल मन के चितेरे को चित्तौड़ खींच लाई । शक्तिसम्पन्न वह मदांध, कामी सुन्दरता की इस प्रतिमूर्ति को पाने के लिए व्याकुल हो उठा। अलाउद्दीन ने राणा रतनसिंह को लिख भेजा कि अपनी रूपमती रानी पद्मिनी को उसके हरम में भेज दे। इसके बदले में वह चित्तौड़ को स्वतंत्र राज्य मान लेगा। राणा ने उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और दोनों के बीच युद्ध हुआ। अलाउद्दीन अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए निकल पड़ा। डाँ गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अपनी पुस्तक राजपूताने के इतिहास में इस सैनिक अभियान का वर्णन विस्तार से किया है। वीर राजपूत सैनिकों ने अपने नायक राणा रतनसिंह के नेतृत्व में सुल्तान के विरुद्ध जमकर संघर्ष किया। बाद में धोखे से राजा रतनसिंह को कैद कर लिया गया, तब उसकी रानी पद्मिनी ने बड़ी वीरता एवं कुशलता से युद्ध का संचालन किया। बाद में सन् १३०३ ई० में रानी पद्मिनी ने हजारों स्त्रियों के साथ आग में जलकर प्राणोत्सर्ग किया।३२ इसी प्रकार की घटना जैसलमेर राज्य में घटित हुई जब वहाँ अलाउद्दीन ने आक्रमण किया। इस आक्रमण के कारण वहाँ की २४ हजार स्त्रियों ने नवजात शिशुओं एवं वृद्धों के साथ जौहर किया।२३ , राणा सांगा की मृत्यु के पश्चात् पानीपत के प्रथम युद्ध (१५२६ ई०) के कुछ
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