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समाधिमरण एवं ऐच्छिक मृत्युवरण
१९९ आर्थिक पक्ष और सती प्रथा
___ सती होने का एक कारण आर्थिक समस्या भी रही है। अनेक परिस्थितियों में स्त्रियों को स्वार्थ की बेदी पर ही सती होना पड़ा है। चाहे वह स्वार्थ का स्तर पारिवारिक हो या सामाजिक। पारिवारिक स्तर पर अगर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि विधवा की समस्या जो पहले उसके पति की समस्या थी अब उसके परिवार की समस्या है। इन समस्याओं को पूरा करने के लिए उसके परिवारवालों को मानसिक शारीरिक एवं आर्थिक तीनों ही प्रकार की समस्याओं से अवगत होना पड़ता है। इन्हीं समस्याओं से बचने के लिए स्त्री को सती होने के लिए विवश किया जाता है। सती होने के लिए विवश किए जाने पर उसके परिवारवालों को बहुत से लाभ होते हैं। अगर उसके परिवार की स्त्री सती हो जाती है तो अन्धविश्वास से परिपूर्ण इस समाज में उसका नाम तो ऊँचा होगा ही, साथ ही यह कार्य आर्थिक रूप से लाभकारी भी होगा। क्योंकि संभव है उसके नाम पर कोई मन्दिर बनवा दिये जायें, लोग उसकी पूजा करने लगे। श्रद्धा एवं भक्ति का भाव प्रदर्शित करने के लिए धन आदि का चढ़ावा भेंट करें। इससे धन और मान दोनों की ही सम्भावना बलवती होती है। सती प्रथा के पीछे अगर इस तरह की भावना है तो उसका कभी भी समर्थन नहीं किया जा सकता है। सतीत्व रक्षा एवं सती की प्रासंगिकता
विधवा अगर यह सोचकर सती हो कि उसका पति मर गया है। अब उसे अकेले ही रहना होगा। अकेले ही उसे अपने सतीत्व की रक्षा करनी होगी। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति भी उसे स्वयं करनी होगी, लेकिन यह सब करने में वह सक्षम नहीं हो पाएगी, हो सकता है इस क्रम में उसको सतीत्व के भंग हो जाने का भय हो तथा वह यह भी विचार करे कि आज तक जिसके साथ रहा वह अब नहीं है, अत: अन्त समय में उसे
अपने पति का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, उसे अपने पति के साथ ही रहना चाहिए तो इस दृष्टिकोण से वह स्त्री इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण कर सकती है। इस दृष्टि से वह मृत्युवरण करने के लिए स्वतन्त्र है। समाधिमरण और जौहर
सतीप्रथा की भाँति जौहर भी स्वेच्छापूर्वक देहत्याग की विधि है। मध्यकालीन भारत में राजपूत (हिन्दू) राजाओं की पत्नियों द्वारा किये गये जौहर के अनेक उदाहरण मिलते हैं जौहर की इस प्रथा में स्त्रियाँ सामूहिक रूप से अपने शरीर को अग्नि में समर्पित
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