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समाधिमरण एवं ऐच्छिक मृत्युवरण
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यह सत्य है कि जैन भिक्षुणी संघ विधवाओं, कुमारियों और परित्यक्ताओं का आश्रय स्थल था। यद्यपि जैन आगम साहित्य एवं व्याख्या साहित्य दोनों में हमें ऐसे उल्लेख मिलते हैं जहाँ पति और पुत्रों के जीवित रहते हुए भी पत्नी या मातायें भिक्षुणी बन जाती थीं। ज्ञाताधर्मकथा में द्रौपदी पति और पुत्रों की सम्मति से दीक्षित हुई थी, किन्तु उनके अतिरिक्त ऐसे उदाहरणों की अधिकता भी देखी जाती है जहाँ पत्नियाँ पति के साथ अथवा पति एवं पुत्रों की मृत्यु के उपरान्त विरक्त होकर संन्यास ग्रहण कर लेती थीं। कुछ ऐसे उल्लेख भी मिले हैं जहाँ स्त्री आजीवन ब्रह्मचर्य को धारण करके या तो पितृगृह में ही रह जाती थी अथवा दीक्षित हो जाती थी। जैन परम्परा में भिक्षुणी संस्था एक ऐसा आधार रही है जिसने हमेशा नारी को संकट से उबारकर आश्रय दिया है।
इसके अतिरिक्त जैनागमों और उनकी व्याख्याओं में ऐसे अनेक सन्दर्भ मिलते हैं जहाँ विधवायें अथवा अबला नारियाँ परिस्थितियों की विकटता को समझते हुए सांसारिक जीवन को त्यागकर भिक्षुणी धर्म स्वीकार कर लेती थीं। भिक्षुणी जीवन में उन्हें अत्यन्त मान-सम्मान मिलता था। उदाहरणस्वरूप मदनरेखा के पति की हत्या उसके भाई ने किया। इस घटना से मदनरेखा विचलित हो गयी, उसे लौकिक जीवन से विरक्ति हो गयी और उसने भिक्षुणी जीवन अपना लिया। १६ मदनरेखा की तरह यशभद्रा " पद्मावती" आदि स्त्रियों के उदाहरण हमारे समक्ष भिक्षुणी जीवन की उपादेयता को स्पष्ट करता है। इसी तरह से ज्ञाताधर्मकथा में भी पोट्टिला " तथा सुकुमालिता" के भिक्षुणी बनने के प्रसंग का वर्णन मिलता है। भिक्षुणी बन जानेवाली ये स्त्रियाँ अपने जीवन को साधना और संयम से इस तरह जोड़ लेती थीं कि सांसारिक विषय वासनाओं का उनके जीवन पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता था । सदाचरण ही उनके जीवन का लक्ष्य बन जाता था। समस्त संघ उनके साधनामय जीवन से उत्प्रेरित होकर साधना के मार्ग पर आगे बढ़ने की चाहत
रखता था।
जैन भिक्षुणी संघ उन सभी स्त्रियों के लिए शरणदाता होता था, जो विधवा, परित्यक्ता अथवा आश्रयहीन होती थीं। जैनधर्म में सती प्रथा को कोई प्रश्रय नहीं मिला। जब-जब भी नारी पर कोई अत्याचार किए गए जैन भिक्षुणी संघ उसके लिए रक्षा कवच बनता रहा, क्योंकि भिक्षुणी संघ में प्रवेश करने के बाद न केवल यह पारिवारिक उत्पीड़न से बच सकती थी, अपितु एक सम्मानपूर्ण जीवन भी व्यतीत कर सकती थी। आज भी विधवाओं, परित्यक्ताओं, पिता के द्वारा दहेज न दे पाने कारण अथवा कुरूपता आदि किन्हीं कारणों से अविवाहित रहने के लिए विवश कुमारियों के लिए जैन भिक्षुणी संघ आश्रय स्थल है। जैन भिक्षुणी संघ ने नारी की गरिमा और उसके सतीत्व दोनों की रक्षा
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