________________
१९४
समाधिमरण
सती प्रथा का समर्थन नहीं करनेवाले ग्रन्थ
वैदिक ग्रन्थों में सती प्रथा का समर्थन नहीं किया गया है। भारद्वाज गृह्यसूत्र में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि स्त्री को विवाह के समय से ही गृह्याग्नि प्रज्वलित रखनी चाहिए। पति की मृत्यु के बाद भी पत्नी को उस पवित्राग्नि को प्रज्वलित रखना चाहिए। कहने का अर्थ यही है कि जिस गृह की रक्षा अर्थात् बच्चे, परिवार आदि की देखभाल एवं उसकी सुरक्षा का भार पहले पति पर था, पति की मृत्यु के बाद इन सभी दायित्वों का निर्वाह उसकी पत्नी के ऊपर आ जाता है और पत्नी का यह धर्म है कि वह इन दायित्वों का निर्वाह उचित ढंग से करे |
सती प्रथा का अस्पष्ट ढंग से समर्थन करनेवाले ग्रन्थ
कौशिक गृह्यसूत्र के अनुसार विधवा को मृतक पति के सिर के समीप उत्तर दिशा की ओर लेटना चाहिए। इसके बाद अन्त्येष्टि - प्रमुख अथवा चिता में आग लगानेवाला व्यक्ति मृतक से कहता है- “हे मर्त्य ! यह स्त्री ( तुम्हारी पत्नी) परलोक में तुमसे युक्त होने के लिए शव के पास लेटी है। इसने पतिव्रता स्त्री के सभी कर्तव्यों को पूरा किया है। इसे इस संसार में सन्तान एवं धन प्रदान करो” इसके बाद उस स्त्री को उठाते हुए कहता है "हे स्त्री ! तुम मृत (पति) के पास लेट रही हो । वहाँ से उठो और उसके पास चली आओ तथा उसकी पत्नी बनो जो तुमसे विवाह करने को तैयार है । इस कथन से यह स्पष्ट है कि स्त्री स्वेच्छापूर्वक पति की चिता के साथ सती होना चाहती है, लेकिन उसके परिवार के लोग उसे ऐसा करने से मना करते हैं। वे उससे (स्त्री) कहते हैं कि सती मत होओ। तुम पुनः सांसारिक जीवन में लौट आओ और अपने देवर आदि से शादी करके उसके बच्चे की मां बनकर अपनी घर-गृहस्थी बसाओ ।
विष्णुधर्मसूत्र' के अनुसार- " पति की मृत्यु के बाद विधवा ब्रह्मचर्य का पालन करे अथवा पति की चिता के साथ ही सती हो जाए ।" इसी प्रकार वृहस्पतिस्मृति' में भी स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि " पति की मृत्यु के बाद स्त्री चिता पर चढ़ जाए अथवा पति के कल्याण के लिए शुद्ध जीवन यापन करे ।” व्यासस्मृति के अनुसार " मृत पति को लेकर ब्राह्मणी अग्नि में प्रवेश करे। जीवित रहने पर केशों को सजाना छोड़कर तपस्या से शरीर को सुखावे।”
३. सती प्रथा का स्पष्टरूप से समर्थन करनेवाले ग्रन्थ
हिन्दू धर्मशास्त्रों में कुछ ऐसे भी ग्रन्थ मिलते हैं जो स्पष्ट रूप से सती प्रथा का
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International