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________________ समाधिमरण एवं ऐच्छिक मृत्युवरण १९१ अतएव हम ऐच्छिक मृत्युवरण के विभिन्न दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर अपनी चर्चा के क्रम को आगे बढ़ा रहे हैं। जीवन और मृत्यु का चिन्तन मानव के लिए अत्यन्त रोचक विषय रहा है । सामान्यतः सभी जीव जीना चाहते हैं। सभी को जीवन प्रिय है और मृत्यु अप्रिय है। सामान्यत: इसी जीजीविषा के आधार पर जीवन को सुखरूप और मृत्यु को दुःखरूप माना जाता है। प्राय: जीवन और मृत्यु के विकल्प में सभी जीवन का विकल्प चुनते हैं, अतः सामान्यतया मृत्यु का विकल्प चुनने का प्रश्न ही नहीं उठता है । फिर भी कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो या तो जीवन से ऊबकर या नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के रक्षण के लिए मृत्यु का वरण करते हैं। मृत्यु के वरण करने के अनेक कारण हो सकते हैं। यथा १. अत्यधिक शारीरिक दुःख या रोग की पीड़ा सहन नहीं कर पाने के कारण व्यक्ति जीवन को त्याग देना चाहता है। २. अत्यधिक निर्धनता के फलस्वरूप अपनी एवं परिवार की जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करने के कारण भी व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक मृत्युवरण करता है । ३. पारिवारिक क्लेश के कारण अत्यधिक दुःखवश जीवन से निराश होकर व्यक्ति जीवन का त्याग करना चाहता है । ४. कभी-कभी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर आँच आती है तो वह प्रतिष्ठारहित जीवन जीने की अपेक्षा मृत्यु को ही अधिक वरणीय मानता है। ५. इन सामान्य कारणों के अतिरिक्त भी कुछ लोग नैतिक मूल्यों या चारित्र की रक्षा के लिए भी अपने जीवन का त्याग कर देना चाहते हैं। ६. कभी-कभी व्यक्ति स्नेही या प्रियजन की मृत्यु से दुःखी होकर भी प्राणत्याग करना चाहता है। धार्मिक दृष्टि से जन्म-जरा-मरण के चक्र से छुटकारा पाने के लिए या आध्यात्मिक मूल्यों के संरक्षण के लिए भी मृत्यु का वरण किया जाता है। ★ इस प्रकार अनेक कारण होते हैं जिससे व्यक्ति जीवन का अभिलाषी होते हुए भी मृत्यु की आकांक्षा कर लेता है। अब यहाँ यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि क्या व्यक्ति इन परिस्थितियों में अपने देहत्याग के लिए स्वतंत्र है या परतंत्र ? अगर स्वतंत्र है तो किस तरह की स्वतंत्रता उसे मिलनी चाहिए। क्या वह आग में जलकर, पानी में डूबकर फांसी ७. Jain Education International For Private & Personal Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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