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जैनधर्म में समाधिमरण की परम्परा
१८१ साध्वी श्री महायशाश्री जी म० का समाधिमरण ४५ दिनों के संथारे के बाद हो गया। उनका समाधिमरण सूरत के उपासरा नगर में हुआ। आप दृढ़ संयमी और व्रत पारायण साध्वी थीं। १७६
श्रीमती डाई देवी बोथरा का समाधिमरण मार्च १९८८ में हो गया। श्रीमती बोथरा ८ मार्च से अनशन व्रत प्रारम्भ की थी और ७ दिनों के बाद उनका देहावसान हो गया।२०२
आचार्य की श्रुतसागर जी महाराज का समाधिमरण ८ मई १९८८ ई० को हो गया। आपने नौ दिनों का संथारा व्रत लिया था। आप श्री आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज के शिष्य थे। १७३
___ आर्यिका सरलमती जी१७४ ने दिनांक २६ जुलाई ९६ को लूणवा में समाधिमरणपूर्वक अपना देहत्याग किया। वें ८५ वर्ष की थीं। वे पिछले एक माह से अस्वस्थ चल रही थी। समाधिमरण की साधना के लिए वे पिछले माह से ही जल का सेवन कर रही थीं और चारों प्रकार के आहार का त्याग का रखा था।
इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आधुनिक काल में जहाँ व्यक्ति दूसरों के संसाधनों को हड़प जाने के प्रयत्न में लगा हुआ है, तथा नए-नए आराम के साधनों की आवश्यकता महसूस कर रहा है, वहीं इस काल में भी जैनधर्म में आस्था व्यक्त करने वाले लोग जीवन के सभी ऐश्वर्यों का त्याग करके समाधिमरणपूर्वक अपना देहत्याग कर रहे हैं।
संदर्भ :
१. २.
३.
जैन शिलालेख संग्रह (प्रथम भाग), हीरालाल जैन, शिलालेख नं०-१, पृ०-२. अदेयरेनाड चित्तूर मौनिगुरवडिगल शिषियत्तियर् नागमतिगन्तियर् मूरु तिङ्गल् नोन्तु
मुडिप्पिदर् । वही, शिलालेख नं०- २, पृ०-२. चरितश्रीनामधेयप्रभुमुनिन्त्रतगल् नोन्तुसौख्यस्थनाय्दान् ।
वही, शिलालेख नं०- ३, पृ०-३ श्री नेडुबोरेय पानप भटारौंन्तु मुडिप्पिदार् । वही, शिलालेख, नं०-६ पृ०-३. धर्मसेनगुरवडिगला शिष्यर् बालदेवगुरवडिगल् सन्यासनं ।
वही, शिलालेख नं०-७, पृ०-४. श्री मालनूर पट्टिनि गुरवडिगल शिष्य- उग्रसेन.... सन्यासनं.।
वही, शिलालेख नं०-८, पृ०-४.
५.
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