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जक्कियब्बे के समाधिमरण का उल्लेख है। " यहाँ से प्राप्त दूसरा शिलालेख ललिकीर्ति मुनि के शिष्य शुभचन्द्रदेव के समाधिमरण का उल्लेख करता है । यह शिलालेख सम्भवतः १२१३ ई० का है।
समाधिमरण
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बिदरे से प्राप्त शिलालेख जो सम्भवतः १०वीं सदी का है। इस शिलालेख में त्रिलोकचन्द्र भट्टार के शिष्य रविचन्द्र भट्टार एवं एक अन्य जैन मुनि के समाधिमरण का उल्लेख है।
अङ्गडि से भी शिलालेख प्राप्त हुए हैं, जो सम्भवतः ९वीं और १०वीं शती के हैं। इन शिलालेखों में विमलचन्द्र पंडितदेव", वज्रपाणि व्रतीश्वर", शुभचन्द्रदेव के शिष्य प्रभाचन्द्र के समाधिमरण का वर्णन मिलता है।
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नेल्लूर से प्राप्त शिलालेख, जो दसवीं ग्यारहवीं शती का है- में जक्कियब्बे " मदुवङ्गनाड् का स्वामी किविर के अयय" के समाधिमरण का वर्णन है।
हिरे-अवलि से कुछ शिलालेख प्राप्त हुए हैं, जो ११वीं से लेकर १४वीं शती तक के हैं, में चन्द्रदेव, सिद्धान्तदेव के शिष्य माधवसेन - भट्टारक देव, देवनन्दि के गृहस्थ शिष्य नालप्रभु आवलि?, सिद्धान्तदेव के गृहस्थ शिष्य चन्द्रगोड, हरिहर राय के मन्त्री, कान - रामण की पत्नी काम गौण्डि* ३, कोप्पण और उसकी पत्नी" के समाधिमरण का उल्लेख है।
करडालु के शिलालेखों में महासती हर्य्यले", कौण्डकुन्दान्वय की गृहस्थ शिष्या हरिहर देवी के समाधिमरण की चर्चा है। ये शिलालेख सम्भवतः ११वीं शती के हैं।
१२वीं - १४वीं शदी के शिलालेख " हेग्गेरे" से प्राप्त हुए हैं। इन शिलालेखों में मेघचन्द्र भट्टारक देव", चन्द्रकीर्ति" आदि के समाधिमरण का उल्लेख है । चिक्कमागदि में समाधिमरण का उल्लेख करनेवाले शिलालेख मिले हैं, जो ११वीं शती के हैं। इन शिलालेखों में वीरोज" और बौम्मव्वे", मुडिकेसावन्तने, बम्मोजर, शुभकीर्ति पण्डित की शिष्या कामव्व" के समाधिमरण की चर्चा है।
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'कडकोल' से कुछ शिलालेख प्राप्त हुए हैं, जो १२ वीं शती के हैं। इन शिलालेखों में सोमय्य५, मारगावुण्ड, चण्डिगौडि" के समाधिमरण का उल्लेख है।
उद्रि से तेरहवीं शदी के शिलालेख प्राप्त हुए हैं। इन शिलालेखों में बोम्मगौड", चन्द्रसेन सूरि के शिष्य मुनिभद्रदेव" के समाधिमरण का उल्लेख है । यहीं से एक और शिलालेख प्राप्त हुआ है जो समाधिमरण की ही चर्चा करता है, लेकिन समाधिमरण लेने
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