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________________ समाधिमरण एवं मरण का स्वरूप १०९ का उपयोग कर सकता है। इसके बाद वनस्पति की तरह अपने समस्त शरीर को निश्चेष्ट करके एक ही स्थान पर शान्त भाव से स्थिर रहकर देहपतन की प्रतीक्षा करता है। ये तीनों ही प्रकार के मरण श्रेष्ठ हैं तथा इन तीनों की सहायता से मुक्ति सम्भव है, लेकिन व्यक्ति को अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार इन तीनों में से किसी एक प्रकार के मरण की विधि को चुनकर उनका अनुकरण करना चाहिए। साधना तथा संयम की उग्रता को लेकर भक्तप्रत्याख्यानमरण श्रेष्ठ है, इंगिनीमरण श्रेष्ठतर है तथा प्रायोपगमनमरण श्रेष्ठतम है। क्योंकि जहाँ भक्तप्रत्याख्यानमरण में व्यक्ति अपनी सेवा स्वयं करता है और दूसरों से भी करवाता है एवं वह कहीं भी विहार कर सकता है, वही इंगिनीमरण लेनेवाला व्यक्ति एक नियत क्षेत्र में ही विहार कर सकता है तथा अपनी सेवा स्वयं करता है किसी अन्य की सहायता नहीं लेता है। इस कारण इंगिनीमरण भक्तप्रत्याख्यानमरण से श्रेष्ठ है। प्रायोपगमनमरण में व्यक्ति न तो स्वयं अपनी सेवा करता है और न दूसरों से ही करवाना है। जहाँ तक विहार करने का प्रश्न है- इस मरण को अंगीकार करनेवाला काष्ठवत एक जगह पड़ा रहता है। देह का अधिक हलन-चलन नहीं करता है, इसी कारण प्रायोपगमनमरण इन तीनों में ही श्रेष्ठतम है। मरण की इन तीन विधियों का वर्णन इस उद्देश्य से किया गया है कि व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुरूप इन तीनों में से किसी एक विधि को अपनाकर मृत्य ग्रहण करे और मोक्ष की प्राप्ति करे। क्योंकि यह कहा गया है कि पण्डितमरण की इन तीन विधियों में से किसी एक को अपनाने से व्यक्ति कर्मावरण को क्षीण कर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। समाधिमरण के साधनाकाल का विभाजन भक्तप्रत्याख्यान द्वारा समाधिमरण प्राप्त करनेवाले के लिए कहा गया है कि वह जघन्य (कम से कम) ६ मास, मध्यम ४ वर्ष और उत्कृष्ट १२ वर्ष तक तप करे।२४९ भगवती आराधना में भी इसे पूर्ण करने का काल बारह वर्ष माना गया है।" इन बारह वर्षों का उपयोग किस प्रकार किया जाय इस पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है, प्रथमचार वर्ष नाना प्रकार के काय क्लेशों को दूर करने में बिताया जाता है, बाद के चार वर्ष में विभिन्न तरह के भोज्य पदार्थों का त्याग करके शरीर को सुखाने में बिताया जाता है।२५५ शेष चार वर्षों में से दो वर्ष कांजी और रस व्यंजन आदि से रहित आहार खाकर व्यतीत किया जाता है। एक वर्ष मात्र कांजी आहार लिया जाता है। अन्तिम बारहवें वर्ष के प्रथम छह महीने में मध्यम तप किया जाता है तथा अन्तिम छह महीने उत्कृष्ट तप करके बिताया जाता है।२५२ इस तरह से व्यक्ति बारह वर्षों का सम्पूर्ण समय जघन्य (कम से कम) मध्यम और उत्कृष्ट तप करके बिताता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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