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________________ नैतिकता के तत्त्वमीमांसीय आधार : २३ पाश्चात्य-दर्शन में नैतिकता की पूर्व मान्यताएं: पाश्चात्य नोति-दर्शन में काण्ट ने नैतिकता को तीन मौलिक धारणाओं को स्थापित किया है-(१) आत्मा की अमरता, (२) संकल्पस्वातन्त्र्य और (३) ईश्वर का अस्तित्व । काण्ट ने आत्मा की अमरता को 'नैतिक प्रगति' की मान्यता से सिद्ध किया है, जबकि अरबन 'नैतिक प्रगति' को स्वतन्त्र रूप से नैतिकता को पूर्व मान्यता के रूप में स्वीकार करते हैं। राशडाल के अनुसार 'बौद्धिक प्रयोजन,' 'काल, तथा 'अमंगल को वास्तविकता' ये तीन नैतिक पूर्व मान्यताए हैं। इस प्रकार 'संकल्प-स्वातन्त्र्य', 'आत्मा की अमरता', व्यक्तित्व, 'विवेकपूर्ण वुद्धि' और 'आत्मा को क्रियाशक्ति' को नैतिकता की अवधारणाओं के रूप में माना गया है। भारतीय दर्शन में नैतिक मान्यताएं: भारतीय नीति दर्शन की भी अपनी कुछ मूलभूत पूर्व धारणाए हैंजैसे 'आत्मा की अमरता' 'पुनर्जन्म का सिद्धान्त', 'कर्म-सिद्धान्त' एवं 'कर्म करने की स्वतन्त्रता। 'ये नैतिकता के आधारभूत तत्त्व है। कर्मफल प्रदाता तथा व्यवस्थापक के रूप में ईश्वर के अस्तित्व को भी कुछ भारतीय दर्शनों ने नैतिकता की पूर्व मान्यता के रूप में स्वीकार किया है। इसके अतिरिक्त बन्धन, उसके कारण तथा बन्धन से मुक्ति और उसके उपाय भी नैतिक मान्यता के अन्तर्गत आते हैं । जैन दर्शन में नैतिकता को पूर्व मान्यताएं: जैन दर्शन में तत्त्वमीमांसा और आचार-मीमांसा में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । तात्त्विक योजना के आधार पर ही निम्नांकित पांच मान्यताओं को नैतिकता की पूर्व मान्यताओं के रूप में स्वीकार किया जा सकता है-(१) आत्मा की अमरता एवं पुनर्जन्म-सिद्धान्त, (२) कर्मसिद्धान्त शुभाशुभ कर्मों का प्रतिफल, ( ३ ) आत्मा का बन्धन तथा उसके कारण ( आस्रव ) (४) बन्धन से मुक्ति के उपाय (संवर-निर्जरा) और (५) नैतिक जीवन का परमसाध्य ( मुक्ति )। आचाराङ्ग में नैतिकता को पूर्व मान्यताएं : सदाचार और साधना के लिए किन बातों पर आस्तिक्य बुद्धि रखना आवश्यक है, इस सम्बन्ध में आचाराङ्ग में स्पष्ट निर्देश हैं। उसके अनुसार नैतिक जीवन के लिए आत्मा का अस्तित्व, पुनर्जन्म, कर्म-फल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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