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________________ द्वितीय अध्याय नैतिकता के तत्त्वमीमांसीय आधार किसी भी विषय का युक्तियुक्त तथा सुव्यवस्थित अध्ययन विज्ञान कहलाता है और प्रत्येक विज्ञान की कुछ मूलभूत अवधारणाएँ होती हैं। उन्हीं के आधार पर तर्कसंगत सिद्धान्त निर्धारित किये जाते हैं। ___ नीति-दर्शन की भी कुछ मूलभूत मान्यताए अथवा अवधारणाए हैं, जिनके अभाव में नैतिकता की व्याख्या नहीं की जा सकती। इन पूर्व अवधारणाओं के आधार पर हो नीति-दर्शन का भव्य-प्रासाद अवस्थित है। इनके प्रति शंकाशील बनने पर नैतिकता का कोई अर्थ नहीं रह जाता । नैतिक मान्यताओं के प्रति निष्ठा रखना आवश्यक है। इनका आधार न तो तर्क है, और न स्वयं-सिद्धि, अपितु आस्था ( निष्ठा) है । प्रश्न उठता है कि यदि नैतिक मान्यताए केवल मनोकामनाए हैं और उनका बौद्धिक निरसन सम्भव है तो उनका नैतिक औचित्य क्या है ? उत्तर में यही कहा जा सकता है कि उनका बौद्धिक खण्डन सम्भव होने पर भी व्यावहारिक निरसन सम्भव नहीं है। श्री संगमलाल पाण्डेय का कथन है कि 'काण्ट ने नेतिक मान्यताओं के बौद्धिक खण्डन से यह निष्कर्ष निकाला कि कोरा बौद्धिक विवेचन निःसार है और नैतिक व्यवहार उस वस्तु को सिद्ध करता है, जिसे कोरा बौद्धिक विवेचन असिद्ध या संदिग्ध छोड़ देता है। केवल बौद्धिक खण्डन से उनकी निरर्थकता सिद्ध नहीं होती। काण्ट कहते हैं कि 'ये मान्यताए तर्कसिद्ध सिद्धान्त नहीं हैं, किन्तु पूर्वकल्पनाए हैं, जो व्यवहारतः अनिवार्य हैं। यद्यपि ये हमारे बौद्धिक ज्ञान का विस्तार नहीं करतों, तथापि व्यवहार में बौद्धिक प्रत्ययों को विषयगत सत्ता प्रदान करती हैं ।२ अरबन इसी बात को पुष्ट करते हैं कि 'नैतिक मान्यताओं को कामना कहने से यह सिद्ध नहीं होता कि नैतिक मान्यताओं को कुछ सत्यता नहीं है। इससे तो यही स्पष्ट होता है के उस सत्य को पाने की बलवती कामना होने के कारण वह सत्य है और उसकी प्राप्ति भी सम्भव है'3 'विज्ञान की मान्यताओं से भिन्न, ये नैतिक मान्यताए वास्तविक सत्य हैं, जिनसे मनुष्य जीते हैं । यदि ये भ्रम या असत्य हो जाएं तो वस्तुतः हमारा जीना हो समाप्त हो जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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