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श्रमणाचार : २४७ चाहिए, जिससे उस स्थान में ठहरे हुए अन्य मत के भिक्षुओं के मन को किसी तरह की ठेस पहुँचे या दुर्भाव पैदा हो । यदि वहाँ शाक्यादि भिक्षु, ब्राह्मण आदि के छत्र, चामर, दण्डादि उपकरण पड़े हों तो उन्हें भीतर से बाहर और बाहर से भीतर न रखे और यदि वे सोए हों तो उन्हें जगाना भी नहीं चाहिए। इस तरह किंचित् मात्र भी उनके मन के प्रतिकूल या संक्लेश पहुंचाने वाला एवं अप्रीतिजनक कार्य न किया
जाए।१८
मांगे गये उपकरण लौटाना :
सूई, कैंची, नाखून-छेदक- कर्णशोधिका आदि गृहस्थ से माँग कर लाये हुए उपकरण अन्य भिक्षुओं को न दिये जाँय और अपना काम पूरा कराके गृहस्थ के घर जाकर हाथ लम्बा कर भूमि पर रख दे तथा यह तुम्हारी वस्तु है ऐसा कहकर उसे दिखा दे, परन्तु हाथ में न दे ।१६९ अवग्रह याचना के सात अभिग्रह
(१) सामान्य विधि के अनुसार आज्ञा लेना।
(२) अन्य भिक्षुओं के लिए उपाश्रय को याचना करना और उनके लिये याचना किए गए मकान में ठहरना। __ (३) अन्य भिक्षुओं के लिये अवग्रह की याचना किये गये मकान में ठहरना किन्तु उनके द्वारा याचित मकान में नहीं ठहरना ।
(४) अन्य साधुओं के लिये अवग्रह को याचना नहीं करना । किन्तु अन्य भिक्षुओं द्वारा याचित मकान में ठहरना।
(५) साधु अपने लिये मकान को याचना करता है, अन्य के लिये नहीं।
(६) साधु जिस मकान की याचना करता है उसमें यदि तृण विशेष (पलाल ) संस्तारक मिला हो तो शयनासन करता है अन्यथा उत्कुटादि आसनों के द्वारा रात्रि व्यतीत करता है।
(७) जिस मकान की आज्ञा लेता है उसी स्थान पर पृथ्वी-शिला, काष्ठ की चौकी तथा पलाल आदि पहले से ही बिछा हुआ होगा तो शयनासन करता है अन्यथा उत्कुट आदि आसनों के द्वारा रात्रि बिताता है ।१७० पांच प्रकार के अवग्रह: __देवेन्द्र अवग्रह, राज अवग्रह, गृहपति अवग्रह, सागारिक अवग्रह और सार्मिक अवग्रह । इन पाँच अवग्रहों का आचारांग में प्रतिपादन है। साधु-साध्वी का अवग्रह सम्बन्धी यही सम्पूर्ण आचार है । १७१
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