SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन पास रह रहा है उनके उपकरणों को भी बिना अनुमति के ग्रहण नहीं करता । पहले उनसे आज्ञा प्राप्त करके और फिर उनका प्रतिलेखन व प्रमार्जन करके उन पदार्थों या उपकरणों को स्वीकार करता है ।943 धर्मशाला आदि में पहुँचने पर मुनि सोच-विचार कर उस उपाश्रय के स्वामी से आज्ञा माँगते हुए कहे कि हे आयुष्मन् गृहस्थ ? यदि आपकी इच्छा हो तो हम यहाँ ठहरने की आज्ञा चाहते हैं । आप हमें जितने समय तक और जितने क्षेत्र ( भाग ) में ठहरने की आज्ञा देंगे, उतने समय और उतने ही क्षेत्र में ठहरेंगे । अन्य जितने भो साधु-साध्वी आयेंगे वे भी उतने ही समय तक और उतने हो भाग में निवास करेंगे । उस अवधि के बाद विहार कर जाएँगे । १६४ इस प्रकार साधु-साध्वी को गृहस्थ से उपाश्रय या स्थान की आज्ञा लेनी चाहिए । अतिथि रूप में साधु के साथ व्यवहार की विधि : (१) साम्भोगिक साधु : ठहरे हुए साधु साध्वी के पास यदि अन्य साम्भोगिक ( समान समाचारी वाले) समनोज्ञ साधर्मी साधु-साध्वी अतिथि रूप में पहुँच जावें तो वह साधुया साध्वी अपने द्वारा लाए आहारादि के लिए अतिथि साधु-या साध्वी को निमंत्रित करे और उस आहार से उनका आदर सत्कार करे। १६५ आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के अष्टम अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में कहा है कि समनोज्ञ साधु को अशनादि आहार के द्वारा अत्यन्त आदरपूर्वक उनका सम्मान करे तथा उनकी सेवा-शुश्रूषा भी करे । १६६ (२) असाम्भोगिक साधु : यदि अतिथि रूप में असाम्भोगिक साधर्मी साधु-साध्वी आ जाए तो वहाँ अवस्थित स्थानीय साधु-साध्वी अपने द्वारा निर्दोष रूप से गवेषणा किए गए पीठ, फलक, शय्या संस्तारक आदि के द्वारा उन समनोज्ञ साधु साध्वियों को निमंत्रित करे अर्थात् सम्मान - सत्कार करे । १६७ तात्पर्य यह कि चरित्र-निष्ठ असाम्भोगिक ( जिसके साथ आहार-व्यवहार न हो ) साधु-साध्वी को आहार के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं से अतिथि साधु का सम्मान करना प्रत्येक साधु-साध्वी का कर्तव्य है । अन्य मतावलम्बी भिक्षु के साथ व्यवहार : गृहस्थ की आज्ञा प्राप्त कर लेने के बाद उस स्थान में ठहरते समय साधु-साध्वी को ऐसा कोई अशिष्ट या असभ्य आचरण नहीं करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy