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पंचमहाव्रतों का नैतिक दर्शन : २०१ ११९. तै० आ० नारायणोपनिषद् १०।६२-६३ 'सत्ये सर्वं प्रतिष्ठितम्' उद्धृत
सूक्ति त्रिवेणी, सम्पा० उपा० अमर मुनि जी, सन्मति ज्ञानपीठ, लोहामण्डी
आगरा-२ सन् १९६८, पृ० १८०. १२१. वाल्मीकिरामायण, ला जनरल प्रस, सन् १९३३, अयोध्याकाण्ड, ११४७
एवं १०९।१३. १२१. आचारांग, १।१३. १२२. २११५. १२३. वही, २११५. १२४. वही, २७१ १२५. उत्तराध्ययन, आत्मा टी० पृ० ११२३. १२६. आचारांग, २।१५. १२७. गांधी वाणी, पृ० ९४. १२८. आचारांग, २।१५. १२९. स्थानांग-१ आस्रव द्वार, पृ० ४२. १३०. उत्तराध्ययन, १६।२-१४. १३१. मनुस्मृति, ६।४१।४९. १३२. गौतम सूत्र, ३।११. १३३. आचारांग, ११५।४. १३४. वही, १।५।४. १३५. आचारांग, ११५।४ पर शीलांकटीका, पत्रांक १९८. १३६. प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार, ४।१. १३७. वही, ४११. १३८. योगदर्शन, २०३८. १३९, सूत्रकृतांग, ११६।२३. १४०. उत्तराध्ययन, १६।१६. १४१. वही, १६।१७. १४२. योगशास्त्र, २।१०४. १४३. ज्ञानार्णव, ११॥३. १४४. अथर्ववेद, ११।५।१-२-१९-२४. १४५. सम्पा० श्री कामता प्रसाद जैन, अहिंसा वाणी ( तीर्थंकर महावीर सचित्र
विशेषांक ), प्रकाशक-अ० वि० ० मि० एटा, सन् १९५६६-१९६१,
अप्रैल-मई, पृ० ६३. १४६. आचारांग, १।३।२. १४७. वही, ११३।२. १४८. वही, २११५. १४९ वही, १।२।६. १५०. १०२।५ एवं २।१३. १५१. वही, १।२।३, ११२।६. १५२. वही, १।२।३. १५३. उत्तराध्ययन, ४।२. १५४. आचारांग, १।२।५. १५५. बृहदारण्यकोपनिषद्-२।४।१. १५६. मनुस्मृति, ६।३८. १५७. आचारांग, २।१५. १५८. मुनि श्री सुशील कुमार, जैनधर्म-अ० भा० श्वे० स्थानकवासी जैन
कान्फ्रेस भवन, १२ लेडी हडिंग रोड, नई दिल्ली, प्रथम आवृत्ति, सन्
१९५८, २४८. १५९. आचारांग, २।१६.
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