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१७४ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन करता है, किन्तु दूसरे विकल्प अर्थात् जहाँ द्रव्य-हिंसा हो किन्तु भावहिंसा न हो, को आचारांगकार हिंसा के रूप में स्वीकार नहीं करता। सूत्रकार कहता है-एक साधक अपनी जीवन यात्रा तय कर रहा है। उसके अन्तर्मन में हिंसा-वृत्ति नहीं है। यद्यपि वह पूरी सावधानी पूर्वक प्रत्येक प्रवृत्ति करता है, फिर भी हिंसा हो जाती है और यह सही भी है कि जब तक आत्मा और देह का सम्बन्ध है, मन-वचन और कायिक योगों का व्यापार चालू है, तब तक हिंसा रुक भी कैसे सकती है ? आध्यात्मिक उत्क्रान्ति ( गुणस्थान ) की तेरहवीं भमिका तक भी अंशत हिंसा होती रहती है, अर्थात् हिंसा का यह क्रम निरन्तर चलता रहता है यह बात आचारांग आदि आगमों में वर्णित है। मन, वचन और काया-इन तीन योगों की प्रवृत्ति जब तक चलती रहेगी, तब तक शुभ या अशुभ कर्म बन्ध होता रहेगा। आचारांग टीका के अनुसार तेरहवें गुण स्थानवर्ती मुनियों से भी काय-योग की चंचलता के कारण हिंसा हो जाती है ।33 मात्र यही नहीं, जीवन के सामान्य व्यवहार के सम्पादन में भी हिंसा होती है। यदि मुनि विहार कर रहा है और मार्ग में नदी हो तो वह क्या करे ? आचारांग के अनुसार ऐसी स्थिति में मुनि नाव में बैठ सकता है, अथवा नदी में पानी जंघा-प्रमाण से अधिक नहीं है तो वह पैदल भी नदी पार कर सकता है।
यद्यपि आचारांग में इस सम्बन्ध में भी स्पष्ट निर्देश है कि मनि नौका में किस प्रकार बैठे अथवा किस विधि से नदी पार करे, ताकि हिंसा अल्पतम हो । फिर भी, चाहे नौका में बैठकर नदी पार करे अथवा पानी में उतरकर पार करे, हिंसा से सर्वथा बचना असम्भव है। नदी पार करने की तो बात ही दूर, एक कदम चलने में भी हिंसा है। अत: इस सम्बन्ध में कर्म-बन्धन का प्रश्न उपस्थित होता है। आचारांगकार ऐसी स्थिति में वेदनीय कर्म का बन्ध मानता है। टीकाकारों का कहना है कि ऐसी प्रमाद एवं कषाय-रहित क्रियाओं के द्वारा होने वाली हिंसा से सातावेदनीय या ईर्यापथिक बन्ध होता है । आचारांग में विवेकपूर्वक नदी पार करने के बाद मुनि के लिए कोई प्रायश्चित नहीं बताया गया है और न उसके लिए ईर्यापथिकी प्रतिक्रमण का ही उल्लेख है। वस्तुतः प्रायश्चित और प्रतिक्रमण सावधानीपूर्वक कार्य ( क्रिया) करने का नहीं होता है, वह तो असावधानी और अविवेकपूर्ण क्रिया करने या आचार के नियमों का अतिक्रमण करने का होता है ।४ वृत्तिकार का अभिमत है कि आगम विधि से प्रवृत्ति नहीं की गई हो तो उसकी शुद्धि के लिए
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