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________________ २: आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन रचयिता गणधर कहे जाते हैं। आचार्य देववाचक के जैनागमों को तीर्थंकर प्रणीत कहने का भाव यहो है कि अर्थ रूप से आगमों के प्रणेता अहंत् ( तीर्थंकर ) हैं। आगम साहित्य की प्रामाणिकता इसी से सिद्ध है कि वे वीतराग तीर्थंकर की वाणी हैं । जैन परम्परा में द्वादशांगी के अतिरिक्त अन्य अंगबाह्य शास्त्र भी आगम के समान ही मान्य हैं, यद्यपि वे गणधर कृत नहीं हैं, वे स्थविरकृत कहे जाते हैं-विशेषावश्यकभाष्य, बहत्कल्पभाष्य एवं तत्त्वार्थभाष्य में उल्लेख है कि गणधर द्वादशांगी की रचना करते हैं और शेष आगमों की रचना स्थविर आचार्य करते हैं । गणधरकृत साहित्य अंगप्रविष्ट और स्थविरकृत साहित्य अंगबाह्य कहलाता है। आचार्य मलगिरि के अनुसार गणधरों के द्वारा तत्त्व जिज्ञासा प्रस्तुत करने पर तीर्थंकर 'त्रिपदी' का प्रवचन करते हैं। इस 'त्रिपदी' के आधार पर जिन आगमों की रचना गणधरों द्वारा की जाती है वे अंगप्रविष्ट हैं और उपांग आदि शेष स्थविरकृत ग्रन्थ अंगबाह्य हैं । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भगवान महावीर द्वारा दिया गया उपदेश प्रचलित आगमों में संकलित है। ये हो आगम ग्रन्थ जैनधर्म के मूल आधार हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा पैंतालीस आगम ग्रन्थों को प्रमाणभूत मानती है तथा श्वेताम्बर स्थानकवासी परम्परा और श्वेताम्बर तेरापंथी परम्परा ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल सूत्र, चार छेद स्त्र और एक आवश्यक सत्र-इस प्रकार बत्तीस आगमों को प्रमाणभूत मानती हैं शेष आगमों को नहीं । दूसरी ओर दिगम्बर परम्परा में उक्त आगम साहित्य मान्य नहीं हैं। दिगम्बर आम्नाय के अनुसार सभी आगम लुप्त हो चुके हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के द्वारा मान्य पैंतालीस आगम छः भागों में विभक्त हैं-ग्यारह अंग, बारह उपांग, दस प्रकीर्णक, छः छेद सूत्र, चार मूल सूत्र और दो चूलिका सूत्र । आज भी यह विशाल ज्ञान-कोश पैंतालीस आगमों के रूप में सुरक्षित है। आगम साहित्य में आचाराङ्ग का स्थान : अंगप्रविष्ट अथवा गणिपिटक (द्वादशांगी) साहित्य भगवान महावीर के निकटतम शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक एवं प्रामाणिक माना जाता है । इसमें आचाराङ्ग का स्थान सर्वप्रथम है । 'आचाराङ्ग' शब्द दो शब्दों के योग से बना है-आचार-अंग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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