SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३९ ] चोरभया गावीओ, पोट्टलए बंधिऊण आणेमि । तिलअइरूढकुहाडे, वणगय मलणा य तेल्लोदा ।। वणगयपाटण कुंडिय, छम्मास हत्थिलग्गणं पुच्छे । रायरयग मो वादे, जहिं पेच्छइ ते इमे वत्था ॥ भाष्य की उपर्युक्त गाथाओं से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भाष्यकार को संपूर्ण कथानक, जो कि चूर्णी और हरिभद्र के धूर्ताख्यान में है, पूरी तरह ज्ञात है; वह मषावाद के उदाहरण के रूप में इसे प्रस्तत करता है। यह स्पष्ट है कि सन्दर्भ देने वाला ग्रन्थ उस आख्यान का आद्यस्रोत नहीं हो सकता है। भाष्यों में जिस प्रकार आगमिक अन्य आख्यान संदर्भ रूप में आये हैं उसी प्रकार यह आख्यान भी आया है अतः यह निश्चित है कि यह आख्यान भाष्य से पूर्ववर्ती है । चूर्णी तो स्वयं भाष्य पर टीका है और उसमें उन्हीं भाष्य गाथाओं की व्याख्या के रूप में आख्यान आया है अतः यह भी निश्चित है कि चूर्णी भी इस आख्यान का मूल स्रोत नहीं है। .पुनः चूर्णी के इस आख्यान के अन्त में स्पष्ट लिखा है - सेसं धुत्तावखाणंगाणुसारेण (पृ० १०५)। अतः निशीथभाष्य और चूर्णी इस आख्यान के आदि स्रोत नहीं माने जा सकते हैं। किन्तु हमें निशीथभाष्य और निशीथचूर्णी से पूर्व रचित किसी ऐसे ग्रन्थ की कोई जानकारी नहीं हैं, जिसमें यह आख्यान आया हो। ___ जब तक अन्य किसी आदि स्रोत के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है, तब तक क्यों नहीं हरिभद्र के धर्ताख्यान को लेखक की स्वकल्पनाप्रसूत मौलिक रचना माना जाये । किन्तु ऐसा मानने पर भाष्यकार और चूर्णीकार दोनों से ही हरिभद्र को पूर्ववर्ती मानना होगा और इस सम्बन्ध में विद्वानों की जो अभी तक अवधारणा बनी हई है वह खण्डित हो जायेगी। यद्यपि उपलब्ध सभी पट्टावलियों, उनके ग्रन्य लघुक्षेत्रसमासवृत्ति में हरिभद्र का स्वर्गवास वीर निर्वाण सम्वत् १०५५ विक्रम सम्वत् ५८५ और ईस्वी सन् ५२७ में माना जाता है तथा पट्टावलियों में उन्हें विशेषावश्यकभाष्य के कर्ता जिनभद्र एवं जिनदास का पूर्ववर्ती भी माना गया है । हरिभद्र की स्वर्गवास तिथि के सन्दर्भ में मेरे शोध सहायक डा० शिवप्रसाद ने मेरे द्वारा संकेतित इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002110
Book TitleHaribhadra ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy