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________________ हरिभद्र के धूर्ताख्यान का मूल स्रोत हरिभद्र के धूर्ताख्यान पर चिन्तन करते समय यह विचार उत्पन्न हुआ कि हरिभद्र ने यह आख्यान कहाँ से ग्रहण किया। धूर्ताख्यान के समीक्षात्मक अध्ययन में प्रो० ए० एन० उपाध्ये ने यह तो विस्तार से चर्चा की है कि हरिभद्र के इस प्राकृत धूर्ताख्यान का संघतिलक का संस्कृत धूर्ताख्यान और अज्ञातकृत मरुगुर्जर में लिखित धूर्ताख्यान पर पूरा प्रभाव है, मात्र यही नहीं उन्होंने यह भी दिखाया है कि अनेक आचार्यों द्वारा लिखित धर्म परीक्षाएँ भी इसी शैली से प्रभावित हैं। फिर भी वे इसका आयस्रोत नहीं खोज पाये। उन्होंने अभिधानराजेन्द्र में उपलब्ध सूचना के आधार पर यह तो सूचित किया है कि इसके कुछ पात्रों के नाम निशीथचूर्णी में हैं। किन्तु उस समय अप्रकाशित होने से निशीथचूर्णी उन्हें उपलब्ध नहीं हो पाई थी अतः वे इस सम्बन्ध में ;धिक कुछ नहीं बता सके। मैंने इसके आद्यस्रोत को जानने की दष्टि से निशीथची देखना प्रारम्भ किया और संयोग से निशीथची के प० १०२ से १०५ के बीच मुझे यह पूरा कथानक मिल गया। मात्र यही नहीं निशीथभाष्य में भी इसका तीन गाथाओं में संक्षिप्त निर्देश है। क्योंकि अभी तक विद्वान् हरिभद्र को विशेषावश्यकभाष्य के कर्ता जिनभद्र और निशीथचूर्णी के कर्ता जिनदास से परवर्ती ही मानते हैं अतः प्रथम दृष्टि में इस आख्यान का मूल स्रोत निशीथभाष्य और निशीथची को माना जा सकता है। यद्यपि भाष्य में मात्र तीन गाथाओं में इस आख्यान का संकेत है, जब कि चूर्णी चार पृष्ठों में इसका विवेचन प्रस्तुत करती है। भाष्य इसका आदि स्रोत नहीं माना जा सकता क्योंकि भाष्य तो इस आख्यान का मात्र संदर्भ देता है, यथा सस-एलासाढ-मूलदेव-खंडा य जुण्णउज्जाणे । सामत्थणे को भत्तं, अक्खातं जो ण सद्दहति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002110
Book TitleHaribhadra ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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