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के सभी उपाय किए गए, परन्तु शूल रोग बढ़ता गया और आकाशवाणी हुई कि तुम्हारे गाँव में रात्रिभोजन का त्यागी श्रीपुंज रहता है, उनके कर स्पर्श से शूल मिट जाएगा। सभी को आश्चर्य हुआ और गाँव में श्रीपुंज ब्राह्मण की तलाश की गई।
श्रीपुंज ब्राह्मण मिलते ही उसे राजा के पास ले गये । श्रीपुंज ब्राह्मण ने क्षेत्र देवता से कहा- “यदि मैं रात्रिभोजन का त्याग करता हूँ तो मेरे करस्पर्श से राजा रोग से मुक्त हो !” यह कहते ही राजा का रोग दूर हो गया। सर्वत्र रात्रिभोजन के त्याग की महिमा फैल गई। श्रीपुंज ५०० गाँव के अधिपति बने और अंत में तीनों मित्रों का मिलाप देवलोक में हुआ। वहाँ से मनुष्य जन्म लिया और संयम लेकर केवलज्ञान प्राप्त किया। रात्रिभोजन के त्याग का उपदेश दिया और निर्वाण प्राप्त किया।
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मुंबई का एक नौजवान प्रतिदिन प्रवचन में जाता था। जन्माष्टमी के अवसर पर उसने गुरुजी से आकर कहा कि मैं पाँच दिन तक प्रवचनों में नहीं आऊँगा क्योंकि मैं जन्माष्टमी में जुआ खेलने कलकत्ता जा रहा हूँ। गुरुजी ने उसे रात्रिभोजन का नियम करवा दिया। वह मित्रों के साथ कलकत्ता चला गया। रात के समय जुआ खेलते उसे भूख लगी । सभी मित्रों ने खाना मंगवाया, परन्तु उस नौजवान ने कुछ नहीं खाया। दूसरे दिन वह वापस मुंबई आ गया और प्रवचन में गया। गुरुजी द्वारा पूछे जाने पर उसने कहा कि मेरे दोस्तों ने रात्रिभोजन न करने पर मुझे जुआ नहीं खेलने दिया; क्योंकि उन्होंने मेरे सामने शर्त रखी कि भोजन करोगे तभी खेल सकोगे अन्यथा नहीं? आपके द्वारा दिए गए नियम ने मुझे
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