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दृढ़ रहने की शक्ति प्रदान की और मैं वहाँ से चला आया। रात्रिभोजन के त्याग से मेरे अंदर जो जुआ खेलने की बीमारी थी वह दूर हो गई। रात्रिभोजन के त्याग से व्यक्ति बहुत सारी बुराइयों से बच सकता है।
सन्दर्भ सूची १. दशवैकालिक, अगस्त्यसिंहचूर्णि, पृ. ६० २. दशवैकालिकसूत्र, राइभत्ते, ३/२ ३. दशवैकालिकसूत्र, ४/१६ | ४. वयछक्कं कायछक्कं, अंकप्पो गिहिभायणं पलियंकनिसेज्जा य, सिणाणं सोहवज्जणं
- दशर्वेकालिकनियुक्ति, २६८ ५. दशवैकालिकसूत्र, ८/२८ ६. उत्तराध्ययनसूत्र, अ. १९/३१ ७. किं रातीभोयणं मूलगुणः उत्तरगुणः? उत्तरगुण एवायं। तहावि सव्वमूलगुणरक्खा हेतुत्ति मूलगुणसम्भूतं पढिज्जति ।।
-अगस्त्यचूर्णि, पृ. ८६ ८. विशेषावश्यकभाष्य गा. १२४७ वृत्ति। ९. योगशास्त्र, ३/४८-४९ १०. वही, ३/६२, ६५-६६ ११. (क) उलूककाकमार्जार, गृद्ध संबरशुकराः । अहिवृश्चिक गोधाश्च, जायन्ते रात्रिभोजनात् ।।
-योगशास्त्र, ३/६७ (ख) उमास्वामि श्रावकाचार, ३२९ (ग) श्रावकाचार सारोद्धार, ११८ उद्धृत-श्रावकाचार संग्रह, भा.३
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