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का था। एक दिन तीनों मित्र आचार्य भगवंत के दर्शन करने गये। वहाँ उपदेश सुनकर श्रावक और भद्रिक दोनों ने रात्रिभोजन के त्याग की प्रतिज्ञा की । श्रावक अपनी प्रतिज्ञा में शिथिल बना और भद्रिक प्रतिज्ञा में दृढ़ ही रहा। उसकी दृढ़ प्रतिज्ञा देखते ही सभी घरवालों ने रात्रिभोजन का त्याग किया। 'महाजनः येन गतः स पन्थाः ' श्रावक के शिथिल होने से सभी घर वाले भी शिथिल हो गए। भद्रिक - श्रावक को बहुत समझाता था, किन्तु वह नहीं समझता था । श्रावक और मिथ्यात्वी दोनों काल क्रम से मृत्यु पाकर नरक में गए और तिर्यंचादि गति में अनेक भव करके गरीब ब्राह्मण के घर श्रीपुंज और श्रीधर के नाम से जन्म प्राप्त किया !
भद्रिक का जीव सुंदर व्रत का पालन कर देवलोक में गया। अवधिज्ञान के उपयोग से अपने मित्रों की दुर्दशा देखी। मित्र के प्रति अपना कर्त्तव्य समझकर मनुष्य लोक में आया, उन्हें प्रतिबोधित कर रात्रिभोजन का त्याग करवाया। क्योंकि मित्र तो उसी को कहते हैं जो
पापान्निवारयति
योजयते हिताय, ह्यान् च गुह्यति गुणान् प्रकटी करोति । आपद्गतं च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदंति
संतः ।।
रात्रिभोजन का त्याग करने से श्रीपुंज और श्रीधर के मातापिता क्रोधित होकर उसे दिन में भोजन देने का त्याग किया। तीन दिन उपवास हो चुके । मित्र देव ने देखा, हमारे दोनों मित्र कष्ट में हैं अतः मुझे सहायक होना चाहिए, यह सोच कर उसी गाँव के राजा के उदर में शूल रोग उत्पन्न किया। रोग को दूर करने
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