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________________ 72 Arhat Pārśva and Dharanendra Nexus मध्यकालीन पार्श्व प्रतिमा : मथुरा संग्रहालय में चार बैठी प्रतिमाएँ हैं। प्रथम प्रतिमा में सर्पफणों के नीचे गद्दी पर पार्श्व भगवान् ध्यानस्थ बैठे हैं। सिंहों द्वारा सिंहासन उठाया हुआ है। दूसरी प्रतिमा की चरणचौकी पर धर्म-चक्र बना है। पार्श्व सर्पफणों के नीचे ध्यानस्थ हैं। यह प्रतिमा नन्दी आनंदी बलदेव से आई थी। तथा पूर्व मध्यकाल की है। दूसरी प्रतिमा पार्श्वनाथ के मध्यकाल की है। इसमें एक मालाधारी विद्याधर सुरक्षित बचा है। इस प्रतिमा को कोसीकलां मथुरा से पाया गया था। इसके अतिरिक्त आगरे के कगरूल नामक स्थान से भी एक बैठी प्रतिमा संग्रह में है। खड़ी मूर्तियां : एक मूर्ति काले पत्थर की खड़ी सप्तफणों के नीचे पार्श्व की कहाऊं देवरिया में है। लखनऊ संग्रहालय में राजघाट वाराणसी से एक अति ही मोहक प्रतिमा आई है यह सुरमई रंग की त्रितीर्थी है। मूलनायक पार्श्व के मस्तक पर सप्त सर्पफण चरण चौकी के दोनों ओर एक-एक सिंह तथा मध्य में धर्म-चक्र बना है। बाईं ओर वंदन मुद्रा में उपासिका तथा इसी ओर एक सर्पफण वेष्टित दोभुजी पद्मावती का अंकन है और दाईं ओर एक सर्पमंडित धरणेन्द्र खड़े हैं। मूल प्रतिमा के दाएं-बाएं एक-एक तीर्थंकर कमल की सजावटयुत गद्दी पर ध्यानस्थ बैठे हैं। सर्प को पार्श्व के पैरों के पीछे की ओर से बनाया गया है। इसकी कुंडली दिखलाई देती है। सर्पफण सात हैं, इनमें एक टूटा है। दोनों ओर मालाधारी विद्याधर तथा मध्य में सर्पफणों पर त्रिछत्र के ऊपर देवदुंदुभिवादक का अंकन है।२२ । मध्यकालीन चौमुखी प्रतिमाएं२३ : मथुरा संग्रहालय में मध्ययुगीन बैठी हुई सर्वतोभद्र प्रतिमा है जिस पर सप्तफणों के नीचे भगवान् पार्श्वनाथ बैठे हुये हैं। लखनऊ के संग्रहालय में इस काल की तीन प्रतिमाएँ हैं। एक मटीले पत्थर की शौरीपुर : बटेश्वर : आगरा२४ और दूसरी अतिसुन्दर नवीं सदी की भूरे पत्थर की सराय अघत एटा जनपद की है (चित्र ४)। जिसमें पार्श्वनाथ दोहरे कमल की गद्दी पर खड़े हुए हैं और नीचे चारों तरफ चौमुखी के दो-दो ग्रह अर्थात् सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि व राहु आदि बने हुए हैं। तीसरी लगभग दसवीं सदी की फैजाबाद की है६ | यह घुटनों के नीचे से टूटी है। सर्पफण खंडित है किन्तु चौमुखी के ऊपर कमल-दल का अलंकरण बना हुआ है। - मानस्तम्भ पर पार्श्वनाथ का अंकन : संग्रह में एक भूरे रंग का मानस्तंभ है जिस पर आठ जिनेन्द्रों का अंकन है। यह स्तम्भ इलाहाबाद से आज से लगभग ६४ वर्ष पूर्व लाया गया था। स्तम्भ पर चार तीर्थंकर नीचे बैठे हैं और चार ऊपर कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाए गये हैं उनमें नीचे की ओर भगवान पार्श्व को दो द्वारा बने लघु मंदिर के भीतर में बैठे ध्यानस्थ दर्शाया गया है। इनके ऊपर सप्तफण का छत्र है तथा सांप की दुम दाईं ओर चरण-चौकी पर सुस्पष्ट है। मध्यकालीन खड़ा पार्श्व-आवक्ष८ : भूरे रंग के पत्थर का सप्तसर्पफणों के छत्र के नीचे पार्श्व मूर्ति का आवक्ष है। यह मूर्ति काफी घिस चुकी है और श्रावस्ती की है। __ पंच तीर्थी२९ : एक अन्य पंचतीर्थी भी संग्रह में है (चित्र ३)। सिंहासन के दोनों ओर एक-एक सिंह तथा मध्य में एक चक्र बना है। तदुपरान्त अलंकृत आसन पर पद्मासन में ध्यान लगाए पार्श्व भगवान् बैठे हैं। इन पर सप्तसर्पफणों का छत्र बना है। सर्प की कुंडली दोनों ओर बनी है। घुटनों के पास दोनों तरफ एक-एक चंवरधारी तथा दोनों ओर दो-दो ध्यानस्थ चार तीर्थंकर बने हैं । इनके ऊपर विद्याधर दम्पत्ति बने थे जो अब घिस चुके हैं। यह मूर्ति लेखरहित है किन्तु शैली के आधार पर लगभग दसवीं शती की है । ये जैन-पंचतीर्थी श्रावस्ती से आई थी और प्रथम बार प्रकाशन में आ रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002108
Book TitleArhat Parshva and Dharnendra Nexus
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages204
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Articles, History, Art, E000, & E001
File Size8 MB
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