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भक्तामर की पद्यसंख्या
युक्तियाँ मुनिवर न्यायविजय जीने कल्याणमन्दिरस्तोत्र को श्वेताम्बर ठहराने के लिए दी थी.९ ।)
आखिर में एक छोटा सा मुद्दा भी स्पष्ट कर देना चाहिए । मुनि जी द्वारा उल्लिखित १२वीं शती की कोई भक्तामर वृत्ति अब तक तो कही से भी नहीं मिली है ।
भक्तामर से सम्बद्ध हुई चर्चाओं में जो शेष बातें देखने में आती हैं इसका ब्योरा अब यहाँ देंगे, और इनके निष्कर्ष कहाँ तक समीचीन हैं, परीक्षा करेंगे । डा० रुद्रदेव त्रिपाठी के कथन से चर्चारंभ करेंगे।
“दिगम्बर-सम्प्रदाय में प्रचलित ४८ पद्यों और श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में प्रचलित ४४ पद्यों की मीमांसा 'भक्तामर-रहस्य' ग्रन्थ में श्री धीरजलाल भाई ने तथा भक्तामर-कल्याणमन्दिर-नमिउण-स्तोत्र प्रथम की भूमिका में श्री हीरालाल रसिकलाल कापड़िया ने पर्याप्त ऊहापोहपूर्वक की है । तत्सम्बन्धित एक छोटा सा लेख आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरि जी ने भी लिखा है और इसमें ४४ पद्यों के होने की पुष्टि की है ।
इस विषय में मुझे भी कुछ माहिती (Information) प्राप्त करने की रुचि हुई । इस बारे में पुरानी हस्तप्रतियाँ देखते समय एक प्रति में ‘भक्तामरस्य चत्वारि गुप्तगाथा:' मिली और इसकी प्रयोग विधि भी मिल गई । परन्तु वह अशुद्धप्राय: है । चत्वारि के स्थान पर वहाँ ‘चतस्रः' होना चाहिए । ये चार पद्य इस प्रकार हैं -
ये: संस्तुवे गुणभृतां सुमनो विभाति (१), इत्थं जिनेश्वर: सुकीर्तयतां जनौ ते (२), नानाविधं प्रभुगुणं गुणरत्नगुण्या (३), और कर्णोऽस्तु तेन न भवानभवत्यधीराः (४) ।
ये पद्य दिगम्बरानुसारी ४८ पद्यों में आये हुए (गम्भीरतारादि) पद्यों की अपेक्षा जुदे हैं, इसलिए कदाचित् ये चार पद्य गुप्त हो सकते हैं, लेकिन इन श्लोकों के साधनार्थ जो विधान उनके साथ लिखा हुआ है, इसमें श्वेत-यज्ञोपवीत कंठ में धारण करने और रात्रि में हवन करने के लिए लिखा गया है, जो श्वेताम्बर परम्परा के विरुद्ध है ।
फिर भी पालिताणा के श्री जिनकृपाचंद्र सूरि भंडार द्वारा छापी गयी भक्तामर-स्तोत्र की भूमिका में श्री जिनविजयसागर जी ने लिखा है कि-"जिनेश्वराणामष्टौ....इति वृद्धसम्प्रदाय:' अर्थात् जिनेश्वर के अष्ट-प्रातिहार्यों में से ४ प्रातिहार्यों के पद्यों को इनकी महाप्रभावशालिता के कारण, लाभालाभ पर विचार करके, दीर्घदर्शी पूर्वाचार्यों ने भंडारों में गुप्त कर दिया है; संप्रति दुर्लभ है और यदि प्रयास द्वारा मिल भी जाय तो भी इसका उपयोग करना नहीं । और इसकी पुष्टि में बताया है कि-भक्तामर स्तोत्र के इन चार पद्यों की तरह ही उवसग्गहर स्तोत्र की एक गाथा, जयतिहुयण स्तोत्र की दो गाथाएँ, अजितशान्तिस्तोत्र की २ गाथाएँ और नमिउणस्तोत्र की स्फुलिंग सम्बन्धी दो गाथाएँ भी पूर्वाचार्यों ने कारणवश भंडारगत की हैं । इसलिए यह विषय संशयास्पद ही है ।"
इन मुद्दों पर हमारे विचार इस प्रकार है । डा० त्रिपाठी ने जिन चार अतिरिक्त पद्यों का जिक्र
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