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मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र
और न ही यह पक्ष भक्तामरस्तोत्र से समर्थित होता है ।
५) अब रही कमल-रचना की बात; काव्य २९ (वास्तव में ३३, दिगम्बर अनुसार ३७) में देवों द्वारा कमल के रचे जाने की वर्णना अवश्य दी गई है । पर वहाँ भूमि पर चरणस्थापना की बात स्पष्ट या प्रत्यक्ष रूप से नहीं कही गई है । सम्बन्धकर्ता पद्यांश इस प्रकार है
पदौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः ।
पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ।। इसका अर्थ है “(भगवन् !) आपके चरण जहाँ पड़ते हैं, वहाँ देवों के द्वारा कमल की कल्पना की जाती है ।" दिगम्बर सम्प्रदाय में “योजन प्रमाण उच्च कमलों पर प्रभु का विहार" की मान्यता होगी तो वह बाद की मालूम पड़ती है । वहाँ भगवान का आकाश में विहार और उस समय सहस्रदलकमल के पदे-पदे प्राकट्य की कल्पना है । (हमने इस सम्बन्ध में विशेष चर्चा यहाँ मानतुंग के सम्प्रदाय से सम्बद्ध अष्टम अध्याय में की है ।)
६) काव्य ३३ (दिगम्बर ३७) में तो सामान्य रूप से जिनेन्द्र से सम्बद्ध विभूतियों की तारीफ़ है । वहाँ कहीं भी निकटवर्ती विभूतियाँ-अंगपूजा-की बात ही नहीं है । मुनि जी क्यों बार-बार अंगपूजा को अपेक्षित मानते थे, समझ में नहीं आता ।
७) काव्य ३४ (दिगम्बर ३८) में ही नहीं, बाद के सात काव्यों में भी जो कहा है वह सब मिलकर कुल अष्ट-महाभय निवारण की बात को लेकर जिनेन्द्र के नाम संकीर्तन के फलस्वरूप, केवल महिमावर्णन ही किया गया है । फिर भी मुनि जी की बात में कुछ हद तक तथ्य है । इससे सम्बद्ध विशेष विचार हमने यहाँ आगे किया है।
८) मुनि जी का कथन है कि काव्य ४४ (दिगम्बर ४८) में “माला धारण करने का निर्देश है और दिगम्बर समाज इससे भी एतराज करता है" पढ़कर बड़ा आश्चर्य होता है । वह पद्य इस प्रकार है।
स्तोत्रम्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्निबद्धां ! __ भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठ गतामजस्रं
तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ।। "हे जिनेन्द्र ! मेरे द्वारा (आपके) गुणों को निबद्ध करने वाला भक्तिपूर्वक रचा गया (इस) स्तोत्र को पाठ करने वाले समुन्नत पुरुष को कण्ठ में सुन्दर रंगीन पुष्प (माला) धारण की शोभा प्राप्त होती है ।" यहाँ कहीं भी तीर्थंकर को तो माला धारण कराने की बात परोक्ष रूप से भी अभिप्रेत नहीं है । तो दिगम्बर को इससे एतराज़ क्यों हो सकता है ? केवल मुनि जी ही नहीं, जितने श्वेताम्बर लेखक स्तोत्र में प्रातिहार्य सन्निहित मानकर चले हैं, सब गलतफ़हमी में रहे हैं और अदालत के कठघरे में खड़े मुजरिम की तरह जवाब के रूप में चित्र-विचित्र, अप्रतीतिकर खुलासा करते रहे हैं । (कुछ ऐसी ही
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