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भक्तामरस्तोत्र के सर्जक एवं सर्जन कथा
का नाम दिया है (परमारराज) भोज, जो कालातिक्रमण मात्र है; अलबत्ता श्रृंखला वाली घटना का जिक्र वहाँ भी है, पर यह बन्दीगृह में न घटकर नगरी के युगादीश्वर के मन्दिर के पिछले हिस्से में घटी थी, ऐसा कहा गया है ।
भक्तामर के सबसे प्राचीन दो वृत्तिकारों में से एक, रुद्रपल्लीय गुणाकर सूरि (ई० १३७०) ने भी उज्जयिनी को घटना स्थल बताया है; परन्तु सम्बन्ध-कर्ता राजा को “वृद्धभोज" कहा है, जिससे शायद प्रतीहारराज मिहिरभोज (ईस्वी ८३५-८८८) विवक्षित है । किन्तु बाण-मयूर वाली घटना प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार ही दी है', जो पीछे कही गई बात के कालक्रम से विपरीत है । यहाँ विशेषता यह है कि उन्होंने मयूर के सूर्यशतक से दो पद्य (क्रमांक १, ६) और बाणभट्ट के चंडीशतक से एक पद्य (क्रमांक १) को उद्धृत किया है, जो बात प्रभाचन्द्र के प्रभावकचरित में नहीं है । मानतुंग की चमत्कार-कथा में एक छोटी सी विगत यह भी दी गई है कि प्रत्येक पद्य के उच्चारण के साथ ही श्रृंखलाएँ टूटती गईं, और ४२ वें पद्य तक पहुँचते ही बंद किए हुए कमरे का भी ताला टूट गया तथा सूरि बाहर निकल आये ।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय की पट्टावलियों में भी इस चमत्कारिक घटना का संक्षिप्त उल्लेख १५वें शतक के आरम्भ से होता है । तपागच्छीय सोमसुन्दर सूरिशिष्य मुनिसुंदर सूरि की गुर्वावली (सं० १४६६ / ई० स० १४१०) में चमत्कारवाली घटना का ज़िक्र है और विशेष में कहा गया है कि भक्तामर के अतिरिक्त भयहरस्तोत्र एवं भत्तिभरस्तव का कर्तृत्व का श्रेय इसी मानतुंग को दिया गया है । यथा :
आसीत् ततो दैवतसिद्धिऋद्धः श्रीमानतुंगोऽथ गुरुः प्रसिद्धः । भक्तामराद् बाणमयूरविद्याचमत्कृतं भूपमबोधयद् यः ।। भयहरत: फणिराज यशाकार्षीद् वशम्वदं भगवान् ।। भक्तिभरेत्यादिनमस्कारस्तवदृब्धबहुसिद्धिः ।।
- गुर्वावली ३५-३६ मुनिसुंदरसूरि के गुरु सोमसुन्दर सूरि के सधर्मा गुणरत्नसूरि की उसी वर्ष की रचना गुरुपर्वक्रम (ई० स० १४१०) में भी मानतुंग से सम्बद्ध एक छोटा सा उल्लेख है । यथा : भक्तामराद्यद्भुतकाव्यसिद्धिः श्रीमानतुंगोऽथ बहुप्रसिद्धिः ।
- गुरुपर्वक्रमः १३' नयचन्द्र सूरि की राजगच्छपट्टावली (१५वीं शती, आखिरी चरण) में नई ही बात दी गई है। वहाँ मानतुंग को मालवेश्वर चौलुक्य वयरसिंहदेव का अमात्य बताया है । वही भक्तामर एवं भयहरस्तोत्र के कर्ता थे ऐसा कहा गया है और बाद में मानतुंग से सम्बद्ध कोई अज्ञात (शायद १३वीं-१४वीं शती) कर्ता के किसी स्तोत्र या प्रशस्ति से लिया गया पद्य उटैंकित किया है । यथा :
यो वैधर्मिकलोकभूपतिपुरस्तुत्रोट जैनस्तवात् । कुर्वे श्रृङ्खललोहबन्धनमयं सङ्घप्रभावोद्यतः।
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