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________________ ध्यानपूर्वक देखा गया है । इन दोनों विद्वानों की मदद के लिये हम आभारी हैं । अपनी ओर से काफ़ी ध्यानपूर्वक, व्यवस्थित एवं रमणीय ढंग से जिन्होंने छपाई सिद्ध की है, वे Unique Offset अहमदाबाद, उसके लिए साधुवाद के पात्र हैं । मुद्रित रूप में यह पुस्तक साकार नहीं बन सकती थी, न चारु रूप से छप सकती थी, यदि श्री आदिनाथ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, नारणपुरा, अहमदाबाद तथा शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, 'दर्शन', शाहीबाग, अहमदाबाद की ओर से इसके प्रकाशन (प्रथमावृत्ति) के लिए उदारता से आर्थिक सहायता न मिली होती । हम दोनों संस्थाओं एवं उनकी विश्वासिकाओं-न्यास (Trusts)और उनके संचालकों के ऋणी हैं । पुस्तक की प्रथमावृत्ति का वितरण निःशुल्क करना, ऐसा निर्णय भी उनके सौजन्य एवं औदार्य का द्योतक है । हमें खेद है कि अनेक वैयक्तिक कारणों और संयोगों से प्रथम प्रकाशन का पूर्णरूप में छपकर वितरण में प्रायः चार साल का विलम्ब हुआ है । दुर्भाग्यवश, यह हमारे वश की बात नहीं थी । प्रस्तावना ( द्वितीयावृत्ति) सामान्यतः द्वितीय संस्करण, प्रथम संस्करण के कुछ वर्ष बाद ही करने की आवश्यकता होती है । इनमें मुख्यत: प्रथम संस्करण में रह गये मुद्रण- अक्षरी - वाक्यविन्यास या तथ्यसम्बद्ध दोष को सुधारने का मौका मिलता है, किन्तु प्रथम संस्करण की मुद्रित प्रतियों के समाप्तप्रायः होने पर भी कुछ मित्र विक्रताओं से और नकलों की माँग आने के कारण प्रथमावृत्ति में कोई असाधारण फेर फार के बिना दूसरा संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। अलबत्ता, कहीं कहीं थोडा बहुत सुधार एवं छोटे छोटे वर्धन जरूर किये गये हैं । श्री श्रीप्रकाश पाण्डेयने कुछ समय के लिये शा० चि० ए० रि० से० में काम किया था । उन्होंने प्रथम संपादक से बनारस में शिकायत की थी कि इस ग्रन्थ पर उन्होंने बहुत मेहनत की थी और उनका ऋणस्वीकार नहीं किया गया । उन्होंने प्रथम प्रूफ्स पढ़कर डा० जगदीशचन्द्र जी को पूर्वावलोकन लिखने के लिये संस्था से भेज दिया था । जिस पर डाक्टर साहब ने अपना प्रतिभाव पूर्वावलोकन में व्यक्त किया है । अतः श्री पाण्डेय की उपसहायता के लिये हम उपकृत हैं । ग्रन्थ में संलग्न दो चित्र अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डियन स्टडीज, गुड़गाँव के सौजन्य से यहाँ प्रकट किया है । उक्त संस्था के हम आभारी हैं । इस संस्करण को तैयार करने में पं० मृगेन्द्रनाथ झा, श्री नारणभाई, पं० बलभद्र प्रजापति, और लेसरांकन में सुदेश शाह एवं अखिलेश मिश्र की भी सहायता मिली है । अतः इनलोगों को हम साधुवाद देते हैं । संपादक Jain Education International 1 मधुसूदन ढांकी जितेन्द्र शाह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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