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सर्ववाधासु घोरासु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा । स्मरणममैतच्चरितं नरो मुच्येत संकटात् ।। मा० पु०, दे० मा०,
"उत्तर चरित्रं,'
१२.२६-२९
कापड़िया जी ने अज्ञात शैव कर्त्ता के शिवकवचस्तोत्र (शायद प्राकू मध्यकालीन या अनुगुप्तकालीन) में से भय निवारण के विषय को लेकर एक पद्य उट्टंकित किया है २६ । यथा : निहन्त दस्यून प्रलयानलार्चिर्जवल त्रिशूलं त्रिपुरान्तकस्य । शार्दूलसिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान् सन्नासयन्त वीराधनुः पिनाकः ।।
शिवकवच - २८
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मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र
विशेष खोज करने से पौराणिकादि वाङ्गमय में से ऐसे और भी पद्य, दण्डक या कंडिकाओं का मिल जाना संभव है ।
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तारा को अष्ट- महाभयों से त्राण करने वाली शक्ति मानने के पीछे ऊपर कथित “देवीमाहात्म्य" का प्रभाव होगा या नहीं, कहना मुश्किल है । लेकिन भद्रकीर्ति के शारदास्तवन में सरस्वती को अष्ट प्रकार की भीती से मुक्त कराने वाली शक्ति के रूप में बताया गया है, उसके पीछे इन दोनों में से किसी एक परम्परा का प्रभाव रहा हो ऐसा संभवित है ।
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ऐसा लगता है कि बौद्धों के या पुराणमार्गी ब्राह्मणीय परंपरा के अथवा इन दोनों के परिचय से उत्तर की मुख्य निर्ग्रन्थ-धारा में स्तुति स्तोत्रादि में जिनेन्द्र का नाम अष्ट- महाभय निवारक है, ऐसी कल्पना को भी स्वीकार किया गया । सार्थवाहों को यात्रा के दरमियान अपने सार्थों की सलामती की बहुत चिन्ता रहती थी । ऐसी स्थिति में उन युगों में देवसहाय की आवश्यकता अपने आप संभवित बन गई होगी । कुछ मानवीय स्तर के रक्षा प्रबन्ध तो अवश्य रहे होंगे, फिर भी ऐसे भयाकुल यात्रा - प्रवासों में उपद्रवों, संकटो के शमन के लिए उस युग में देवप्रार्थना और उस पर अनन्य श्रद्धा के सिवा और कोई तरणोपाय भी शायद नहीं रहा होगा ।
टिप्पणियाँ :
१. सिद्धात्मा को ईश्वर की तरह कर्त्तारूप में नहीं माना गया । वह केवल ज्ञाता, द्रष्टा ही है ।
२. बाद के, मध्यकाल में कभी कभी, उपचार से, जिन देवता संकट को दूर करता है ऐसा उल्लेख मिल जाता है । ३. यहाँ इस सम्बद्ध में भयहरस्तोत्र के पद्य १०- १७ देख सकतें है ।
४. ठाणंगसुत्तं समवायांग सुत्तं य, जैन आगम ग्रन्थमाळा, गन्थाङ्क ३, सं० मुनि जम्बूविजय, मुंबई १९८५, सूत्र ५४९, पृ० २२४. ( अन्य आवृत्तिओं में पंचम भयस्थान में भिन्नता दिखाई देती है
५. ही० र० कापड़िया, चतुर्विंशतिका, आगमोदय समिति, मुंबई १९२६, पृ० १८३. ६. प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थाङ्क ३, सं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक, वाराणसी ।
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