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________________ [ ३ ] श्रमण धारा वर्ण व्यवस्था के सन्दर्भ में बहुत कठोर नहीं थी। उसमें अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्ध होते होंगे, फलतः उन्हें वर्ण संकरों की श्रेणी में रखा जाता होगा। फिर भी यह एक क्लिष्ट कल्पना ही है, इसे निर्विवाद तथ्य नहीं कहा जा सकता है ।। पार्श्व के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से जो प्राचीनतम साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध है, वह जैन आगम ऋषिभाषित का है। ऋषिभाषित जैन परम्परा के आगम ग्रन्थों में आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के पश्चात् का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ है । मेरी दृष्टि में इसका सम्भावित रचनाकाल ई० पू० चौथी शताब्दी है। एक स्वतन्त्र लेख में मैंने इस बात को अनेक प्रमाणों के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास भी किया है। यह ग्रन्थ सम्पूर्ण पालि त्रिपिटक और आचारांग के प्रथम श्रु तस्कन्ध को छोड़कर सम्पूर्ण जैन आगम साहित्य से प्राचीन है। उसकी भाषा-शैली, छन्द योजना तथा साम्प्रदायिक संकीर्णता से रहित उदार दृष्टि ऐसे तथ्य हैं जो उसकी प्राचीनता को निर्विवाद रूप से सिद्ध करते हैं।4 ऋषिभाषित में महावीर और बुद्ध के पूर्ववर्ती तथा समकालीन ४४ ऋषियों के नामोल्लेख पूर्वक उपदेश संकलित हैं। इनमें ब्राह्मण परम्परा के देवनारद, असितदेवल, याज्ञवल्क्य, भारद्वाज, उद्दालक, आरुणि आदि के, बौद्ध परम्परा के सारिपुत्र, महाकाश्यप एवं वज्जियपुत्त के, अन्य स्वतन्त्र श्रमण परम्परा के ऋषियों में मंखलि गोसाल आदि के तथा जैनपरम्परा पार्श्व एवं वर्धमान के उपदेश भी संकलित हैं । ऋषिभाषित के ऋषियों में सोम, यम, वरुण और वैश्रमण (कुबेर) इन चार लोकपालों को छोड़कर लगभग सभी ऋषि ऐतिहासिक प्रतीत होते हैं । अतः पार्श्व की ऐतिहासिकता में भी हमें कोई सन्देह नहीं रहता है। ___ऋषिभाषित के पार्श्व नामक इस अध्ययन की एक विशेषता यह भी है कि उसमें इस अध्याय का एक पाठान्तर भी दिया हुआ है जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 'गति व्याकरण' नामक ग्रन्थ में इस अध्याय का दूसरा पाठ पाया जाता है। इससे इस अध्याय की विषयवस्तु तथा उससे सम्बन्धित व्यक्ति की ऐतिहासिकता की पुष्टि होती है। हमने एक स्वतन्त्र लेख में इस बात को भी सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि ऋषिभाषित किसी भी स्थिति में ईसापूर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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