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________________ [ ३९ ] बकुश, कुशील आदि पांच प्रकार के निर्ग्रन्थों की चर्चा में पार्श्वस्थ का उल्लेख नहीं है,106 किन्तु सूत्रकृतांग, भगवती एवं ज्ञाताधर्मकथा में पार्श्वस्थ, कुशील और स्वच्छन्द को पर्यायवाची बताया गया है। 107 अतः स्वाभाविक रूप से यह विचार उपस्थित होता है कि हम पार्श्वस्थ और पापित्य के बीच जो सम्बन्ध जोड़ रहे हैं वह मात्र काल्पनिक नहीं है। जब तक इस बात का कोई ठोस प्रमाण प्राप्त न हो कि पार्श्वस्थ और पापित्य एक ही थे, तब तक दोनों को एक मानने का अत्यधिक आग्रह तो नहीं रखा जा सकता है। फिर भी पापित्यों के आचार सम्बन्धी शिथिल नियम हमें दोनों को एक मानने के लिए विवश करते हैं। पापित्यों और पाश्र्वस्थों को एक दूसरे से सम्बन्धित मानने का हमारे पास एक ही आधार है वह यह कि ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में काली आदि को एक ओर पार्व की शिष्यायें कहा गया है वहीं दूसरी ओर उनके शिथिलाचारी (पासत्थ) होने का भी उल्लेख है। 108 पाश्र्वापत्य श्रमण-श्रमणियां और गृहस्थ उपासक-उपासिकाएं श्वेताम्बर आगम साहित्य में हमें पार्श्व और उनके अनुयायियों के संबंध में अनेक उल्लेख उपलब्ध होते हैं; जो अधिकांश ऐतिहासिक हैं । ज्ञातासूत्र में आमलकप्पा, श्रावस्ती, हस्तिनापुर, काम्पिल्य, वाराणसी, चम्पा, नागपुर, साकेत, अरक्खुरी, मथुरा आदि नगरों की अनेक स्त्रियों को पार्श्व द्वारा दीक्षित किये जाने का उल्लेख है। यद्यपि ये कथा-प्रसंग कल्पनात्मक होने से ऐतिहासिक दृष्टि से प्रामाणिक नहीं हैं, क्योंकि इनमें पार्श्व के द्वारा दीक्षित इन सभी स्त्रियों का स्वर्ग की विभिन्न देवियों के रूप में उत्पन्न होकर वहाँ से महावीर के वन्दनार्थ आने के उल्लेख हैं तथा इसी सन्दर्भ में उनके पूर्व-जीवन की चर्चा की गयी है। इसके विपरीत आचारांग, सूत्रकृतांग, राजप्रश्नीय, उत्तराध्ययन आदि में पापित्यों के संबंध में जो तथ्यपरक सूचनाएं प्राप्त होती हैं उनकी ऐतिहासिकता प्रामाणिक लगती है । आचारांग में महावीर के माता-पिता को पार्श्व की परंपरा का अनुयायी कहा गया है। 10 सूत्रकृतांग में उदकपेढाल नामक पापित्य श्रमण का उल्लेख है। 110 उदकपेढाल संबंधी विव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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