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________________ [ ३३ ] अपनी व्रत व्यवस्था में ब्रह्मचर्य की अनिवार्यता पर और सम्पूर्ण परिग्रह के त्याग के रूप में वस्त्र त्याग पर भी जो बल दिया था उसके कारण यह आवश्यक हो गया था कि साधक की योग्यताओं को परखने के पश्चात् ही उसे स्थायी रूप से संघ में स्थान दिया जाये। क्योंकि नग्न रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करना साधना के क्षेत्र में परिपक्वता आये बिना संभव नहीं था। अतः साधना के क्षेत्र में दो प्रकार के श्रमणों की व्यवस्था की गयी थी एक सामायिक चारित्र से युक्त और दूसरे उपस्थापनीय चारित्र से युक्त । महावीर की समकालीन बौद्ध परंपरा में भी प्रव्रज्या और उपसम्पदा को अलग-अलग किया गया था। प्रथमतः साधक को कुछ समय परीक्षण के तौर पर संघ में रखा जाता था, फिर उसे योग्य सिद्ध होने पर अन्तिम रूप से दीक्षित किया जाता था। इस प्रकार महावीर ने छेदोपस्थापनीय चारित्र की व्यवस्था करके पार्श्व की परंपरा में एक संशोधन कर दिया था। अन्य अन्तर पाव और महावीर की परंपराओं के अन्य प्रमुख अन्तरों में औद्देशिक, राजपिण्ड, मासकल्प और पर्युषण संबंधी अन्तर भी माने गये हैं । जैन परंपरा में जिन १० कल्पों की अवधारणा है उन कल्पों में निम्न ६ कला अनवस्थित माने गये हैं। अनवस्थित का तात्पर्य यह है कि सभी तीर्थंकरों की आचार व्यवस्था में उन्हें स्थान नहीं दिया जाता है। ये अनवस्थित कल्प निम्न हैं--(१) अचेलता, (२) प्रतिक्रमण, (३) औद्देशिक, (४) राजपिण्ड, (५) मासकल्प और (६) पर्युषण 198 . इनमें से अचेलता और प्रतिक्रमण की चर्चा पूर्व में कर चुके हैं । अवशिष्ट औद्देशिक, राजपिण्ड, मासकल्प और पर्युषण की चर्चा आगे करेंगे। औद्देशिक-पार्श्व की परंपरा में श्रमण के लिए बनाये गये आहार का ग्रहण करना वजित नहीं था, जबकि महावीर ने श्रमणों के लिए बनाये गये आहार को ग्रहण करना निषिद्ध ठहराया। इस प्रकार औद्देशिक अर्थात् श्रमण के निमित्त बने भोजन को ग्रहण किया जाये या न किया जाये इस संबंध में पार्व और महावीर की परंपरायें भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रखती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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