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________________ [ २७ ] उल्लेख मिलता है । इस चर्चा में मुख्य रूप से सामायिक, प्रत्याख्यान, संयम, संवर, विवेक और व्युत्सर्ग के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है। मात्र यही नहीं, यहां यह भी बताया गया है कि आत्मा ही सामायिक है, संयम है, संवर है, विवेक है, इत्यादि । क्योंकि ये सभी आत्मापूर्वक होते हैं । यहाँ यह भी प्रश्न उपस्थित किया गया कि आत्मा ही सामायिक है तो फिर कषाय आदि भी आत्मा ही होंगे और फिर कषायों की निन्दा क्यों की जाती है। पूनः यह प्रश्न भी उठाया गया कि निन्दा संयम है या अनिन्दा। इसके स्पष्टीकरण में महावीर के स्थविरों ने कहा कि परनिन्दा असंयम है और आत्मनिन्दा संयम है। इसी प्रकार एक अन्य प्रसंग में भगवती में महावीर के श्रमणोपासकों और पाश्र्वापत्य श्रमणों के बीच हुई वार्ता का भी उल्लेख मिलता है । इसमें महावीर के श्रमणोपासक संयम और तप के फल के विषय में प्रश्न करते हैं। पापित्य स्थविर इसके उत्तर में कहते हैं कि संयम का फल अनाश्रव है और तप का फल निर्जरा है। पार्वापत्य श्रमणों के इस उत्तर पर महावीर के श्रमणोपासक फिर प्रश्न करते हैं कि यदि संयम का फल अनास्रव तथा तप का फल निर्जरा है तो जीवदेवलोक में किस कारण से उत्पन्न होते हैं ? इस सम्बन्ध में पापित्य श्रमण विभिन्न रूपों में उत्तर देते हैं। कालीयपुत्र स्थविर कहते हैं कि प्राथमिक तप से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं। मेहिल स्थविर कहते हैं कि प्राथमिक संयम से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं। आनन्द रक्षित स्थविर कहते हैं कि कामिकता अर्थात् सराग संयम और तप के कारण जो कर्मबन्ध होता है उसके निमित्त से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं । काश्यप स्थविर कहते हैं कि सांगिकता (आसक्ति) से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं । 84 इस प्रकार हम देखते हैं कि पाश्र्वापत्य परम्परा में तप, संयम, आस्रव, अनास्रव, निर्जरा आदि की अवधारणायें न केवल व्यवस्थित रूप से उपस्थित थीं, अपितु उन पर गम्भीरता पूर्वक चिन्तन भी किया जाता था। उत्तराध्ययन सूत्र में महावीर और पार्श्वनाथ की परम्परा के मूलभूत अन्तर चातुर्याम और पंचयाम के तथा सचेल और अचेल के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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