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________________ [ २५ ] पार्श्वनाथ की दार्शनिक और आचार संबंधी मान्यताओं का एक संक्षिप्त चित्र यहाँ प्रस्तुत किया गया है । अन्य आगम ग्रन्थों में वर्णित पावं का धर्म और दर्शन यदि हम सूत्रकृतांग की ओर आते हैं तो हमें पार्श्वनाथ की मान्यताओं के सम्बन्ध में कुछ और अधिक जानकारी प्राप्त होती है। सूत्र कृतांग में 'उदक पेढालपुत्र' नामक पाश्र्वापत्य श्रमण की महावीर के प्रधान गणधर गौतम से हुई चर्चा का उल्लेख है । उदक पेढालपुत्र गौतम से प्रश्न करते हैं कि आपकी परम्परा के कुमारपुत्रीय श्रमण श्रमणोपासक को इस प्रकार का प्रत्याख्यान कराते हैं कि "राजाज्ञादि कारण से किसी गृहस्थ को अथवा चोर को बांधने-छोड़ने के अतिरिक्त मैं किसी त्रस जीव की हिंसा नहीं करूंगा।" किन्तु इस तरह का प्रत्याख्यान दुःप्रत्याख्यान है, क्योंकि त्रस जीव मरकर स्थावर हो जाता है और स्थावर जीव मरकर त्रस हो जाता है। अतः उन्हें इस प्रकार सविशेष प्रत्याख्यान करवाना चाहिये कि "मैं राजाज्ञादि कारण से गृहस्थ को अथवा चोर को बांधने या छोड़ने के अतिरिक्त त्रसभूत अर्थात् त्रस पर्याय वाले किसी जीव की हिंसा नहीं करूंगा। इस प्रकार 'भूत' अर्थात् त्रस अवस्था को प्राप्त विशेषण लगा देने से उक्त दोषापत्ति नहीं होगी । गौतम ने उनकी इस शंका का समाधान करते हुए इस बात को विस्तार से स्पष्ट किया है कि प्रत्येक प्रत्याख्यान किसी भी जीव की अवस्था विशेष से ही सम्बन्धित होता है। जो त्रस प्राणियों की हिंसा का प्रत्याख्यान करता है वह त्रस पर्याय में रहे हुए जीवों की ही हिंसा का प्रत्याख्यान करता है । जिस प्रकार कोई व्यक्ति श्रमण पर्याय त्यागकर गृहस्थ बन जाय तो वह गृहस्थ ही कहा जायेगा, श्रमण नहीं ; इसी प्रकार त्रस काय से स्थावर काय में गया जीव स्थावर है त्रस नहीं। 0 इस चर्चा से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं पापित्यों में भी हिंसा आदि के प्रत्याख्यान की परम्परा थी और साथ ही वे प्रत्याख्यान की भाषा के प्रति भी अत्यन्त सजग थे। भगवती सूत्र में पापित्य गांगेय अनगार और भगवान् महावीर की चर्चा का उल्लेख है। इसमें चारों गतियों में जन्म और मृत्यु के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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