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तथा परवर्ती श्वे० आचार्यों के पार्श्वनाथ चरित्रों में उनके विवाह का उल्लेख हुआ है । जबकि दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति, पद्मवरित, उत्तरपुराण और वादिराजकृत पार्श्वनाथ चरित्र में कुशस्थल जाने और विवाह करने का उल्लेख नहीं है । दिगम्बर आचार्य पद्मकीर्ति ने कुशस्थल जाने और उनके विवाह प्रस्ताव का प्रसंग उठाकर भी विवाह होने का प्रसङ्ग नहीं दिया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि पार्श्व के विवाह के सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के आचार्यों में मतभेद है । प्राचीन आगमिक प्रमाणों के इस सम्बन्ध में मौन होने से निर्णयात्मक रूप में कुछ कह पाना कठिन है । वस्तुतः पार्श्वनाथ के चरित्र लेखन में क्रमशः विकास देखा जाता है, इसलिए उसमें परंपरागत अनुश्र तियों और लेखक की कल्पनाओं का मिश्रण होता रहा है ।
कमठ और नागोद्वार की घटना
पार्श्व के जीवन वृत्त के साथ कमठ से हुए उनके विवाद और नाग-नागिन के उद्धार की घटना बहुचर्चित है । किन्तु प्राचीन श्वेताम्बर आगम समवायांग और कल्पसूत्र इस घटना के संबंध में भी मौन हैं । आवश्यकनियुक्ति में भी इस संबंध में कोई उल्लेख नहीं है । कमठ तापस से उनके विवाद और नाग उद्धार की घटना का उल्लेख हमें वे साहित्य में सर्वप्रथम चउपन्नमहापुरिसचरियं " " में मिलता है । उसके अनुसार कमठ ( कढ ) नामक एक तपस्वी वाराणसी के निकट वन में तप कर रहा था । पार्श्वकुमार ने समूहों में पूजा सामग्री लेकर लोगों को जाते देखकर अपने अनुचरों से इस संबंध में पूछा कि ये लोग कहां जा रहे हैं ? अनुचरों ने बताया कि नगर में कमठ नाम का एक महातपस्वी आया है । ये लोग उसी का वन्दन करने जा रहे हैं । पार्श्व भी कमठ को देखने गये। वहां उन्होंने देखा कि कमठ पंचाग्नि तप कर रहा है। हिंसा युक्त तप को देखकर पार्श्व ने तापस से कहा कि धर्म तो दया मूलक है, अग्नि को प्रज्ज्वलित करने से उसमें अनेक जीवों की हिंसा होती है । तपस्वी ने कुमार को कहा कि तुम अभी बालक हो तुम धर्म को क्या जानते हो ? बताओ यहां किस जीव की हिंसा हो रही है ? पार्श्व ने जलते हुए लक्कड़ को अग्नि से निकालकर सावधानी से चीरकर और उसमें जलते हुए सर्प को दिख
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