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________________ [ १३ ] का स्पष्ट उल्लेख नहीं है । यद्यपि आवश्यकचूर्णि, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पासनाहचरिउ आदि के अनुसार पार्श्वनाथ के गर्भकाल में माता के द्वारा अंधेरी रात्रि में पास में चलते हुए सर्प को देखे जाने के कारण उन्हें पान ऐसा नाम दिया गया । 1 दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में इन्द्र के द्वारा उनका नाम पा रखे जाने का उल्लेख है। 3. यद्यपि ये सभी कल्पनायें ही लगती हैं, कोई ठोस प्रमाण नहीं है। पाश्र्व का विवाह प्रसंग पान के विवाह प्रसंग को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के आचार्यों में मतभेद है । श्वेताम्बर आगम ग्रन्थ समवायांग, कल्पसूत्र, आवश्यक नियुक्ति आदि में हमें पार्श्वनाथ के विवाह के संबंध में कोई भी उल्लेख नहीं मिलता है। श्वेताम्बर परम्परा के ही अन्य ग्रन्थ आवश्यकनियुक्ति तथा पउमचरियं में और दिगम्बर परम्परा के तिलोयपण्णत्ति, पद्मपुराण एनं हरिवंशपुराण में यह उल्लेख है कि वासुपुज्ज, मल्लि, नेमि, पार्श्व और महावीर—ये तीर्थंकर कुमार अवस्था में दीक्षित हुए शेष ने राज्य किया। कुमार अवस्था में दीक्षित होने का अर्थ जहां दिगम्बर परम्परा अविवाहित होना मानती है वहाँ श्वेताम्बर परम्परा युवराज अवस्था ऐसा अर्थ करती है। 'कुमार' का अर्थ युवराज अवस्था करना अधिक संगत है क्योंकि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही ग्रन्थों में इस गाथा के अगले ही चरण में कहा गया है कि इन्होंने राज्य नहीं किया। आवश्यकनियुक्ति में प्रयुक्त 'कुमार' शब्द का अर्थ अविवाहित किया जा सकता है क्योंकि गाथा के अगले चरण में 'णो इत्थिया अभिसेया' पाठ मिलता है, जिसका अर्थ विवाह हो सकता है किन्तु अनेक प्रतियों में 'इत्थिया' के स्थान पर 'इच्छिया' पाठ भी मिलता है, जिसका अर्थ होगा राज्याभिषेक की कामना नहीं की । पुनः आवश्यकनियुक्ति के कुमार शब्द का अर्थ अविवाहित करने पर आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में और उसमें अन्तर्विरोध होगा, क्योंकि आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध में महावीर के विवाहित होने का उल्लेख है ! 54 श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थ चउपनमहापुरिसचरियं,56 त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र और देवभद्र के सिरिपासणाहचरियर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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