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सुवर्णभूमि में कालकाचार्य
उपसंहार
इस लेख का उद्देश्य है जैन साक्षियों की छानबीन करना। इस समीक्षा से हम निश्चितरूप से हक सकते हैं कि कालक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। एक तो उन्होंने अनुयोगादि ग्रन्थों का निर्माण किया और दूसरा इन्हीं ग्रन्थों में से प्रव्रज्याविषयक कालकरचित गाथायें मिली हैं। निगोद-व्याख्यानकार, सुवर्णभूमि को जाने वाले, आर्य समुद्र के दादागुरु और अनुयोगनिर्माता, आजीविकों से निमित्त पढ़नेवाले और जिन्होंने सातवाहन राजा को मथुरा का भविष्य कहा था वह कालक आर्य श्याम ही हैं। इतना तो निश्चित ही है।
धर्मघोषसूरि ने श्रीऋषिमण्डलस्तव में प्रज्ञापनाकार श्यामार्य को प्रथमानुयोग और लोकानुयोग के कर्ता कालकसूरि कहा है । कालक के बाद उन्होंने आर्य समुद्र की स्तुति की है
निज्जूदा जेण तया पन्नवणा सव्वभावपन्नवणा। तेवीसइमो पुरिसो पवारो सो जयउ सामज्जो ॥ १८० ॥ पढमणुओगे कासी जिणचक्किदसारपुव्वभवे । कालगसूरी बहुअं लोगणुओगे निमित्तं च ।। १८१ ।। अजसमुद्दगणहरे दुब्बलिए धिप्पए पिहू सव्वं । सुत्तत्थचरमपोरिसिसमुहिए तिगिण किइकम्मा ॥ १८२ ।।
-जैनस्तोत्रसन्दोह, भाग १, पृ० ३२६-३०. . देवेन्द्रसूरि के शिष्य श्री धर्मघोषसूरि का लेखनसमय है। वि० सं० १३२०-१३५७ अासपास । अतः ई० स० की तेहरवीं शताब्दि में, सङ्घभाष्य आदि के कर्ता, श्रीधर्मघोषसूरि जैसे प्राचार्य भी श्यामार्य को ही अनुयोगकार कालकाचार्य मानते थे।
गर्दभराजोच्छेदक कालक भी वे ही आर्य श्याम हैं ऐसा हमारा मत है। किन्तु अभी भी अगर किसी को शङ्का रही हो, तो इनको यही देखना चाहिये कि बलमित्र-भानुमित्र और आर्य कालक का समकालीनत्व तो निश्चित ही है। पुराने ग्रन्थों का प्रमाण है। फिर पट्टावलियों की पट्टधर कालगणना या स्थविरकालगणना या नृपकालगणना जिनमें कहीं कहीं गड़बड़ है उनको छोड़ कर स्वतंत्र प्राचीन ग्रन्था साक्षियों से हमने बताया है कि गर्दभोच्छेदक कालक और दूसरी घटनाओं के नायक आर्य कालक एक ही हैं और वे गुणसुन्दर के शिष्य अार्यश्याम ही होने चाहिये। इनका समय ई० स० पूर्व पहली या दूसरी शताब्दि है।
जिनको दूसरे कालक (वीरात् ४५३) मंजूर है इन के हिसाब से भी कालक के सुवर्णभूमिगमन का समय इ० स० पूर्व पहली शताब्दि तो है ही। .. कालक किसी सातवाहन राजा के समकालीन थे। वह राजा कौन था? क्यों कि कालक एक काल्पनिक व्यक्ति नहीं हैं इस लिए अब सातवाहन वंश के इतिहास के बारे में विद्वानों को फिर सोचविचार करना चाहिये। पञ्चकल्पभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य जैसे ग्रन्थों के कर्ता सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण ने या दूसरे भाष्यकार चूर्णिकार ने जो ऐतिहासिक बातें लिखी हैं वे बिलकुल कपोलकल्पित नहीं किन्तु ज्यादातर
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