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सुवर्णभूमि में कालकाचार्य कोई आवश्यकता नहीं है। शक्रप्रतिबोध के निर्देश से ही यह स्पष्ट है कि उक्त गाथोक्त वे ही हैं जिनका वर्णन 'युगप्रधान' के रूप में 'निगोद-व्याख्याता' विशेषण के साथ, युगप्रधान-स्थविरावलियों में किया गया है।” १० ' जब इन्द्रप्रतिबोधक निगोद-व्याख्याता प्रथम कालक ही हैं तब उत्तराध्ययन-नियुक्तिगाथा के आधार से सुवर्णभूमि को गये होंगे यह भी मानना चाहिये।
परिशिष्ट ४
निमित्तशास्त्रज्ञ आर्य कालक निशीथ चूर्णि, उद्देश १, पृ० ७० में निम्नलिखित उल्लेख है-" इदाणं विजत्ति अस्य व्याख्या विजट्ठा उभयं सेवेत्ति। उभयं णाम पासत्थ गिहत्था ते विजमंतजोगादिणिमित्तं सेवेत्यर्थः।" इस तरह विद्याप्राप्ति के निमित्त साधु को पतित साधु अथवा गृहस्थ की भी सेवा करनी चाहिये ऐसी प्राचीन शास्त्रकार की अनुज्ञा का उपयोग कालकाचार्य के जीवन में देखने में आता है। निमित्त ज्ञान इन्होंने अाजीवक-मत के साधुत्रों से प्राप्त किया। इस घटना का स्फोट करनेवाला पञ्चकल्पचूर्णिगत उल्लेख हम पहले दे चुके हैं। कालकाचार्य ने जो ग्रन्थ बनाये उनका उल्लेख पञ्चकल्पभाष्य और पञ्चकल्पचूर्णि में इसी घटना के साथ ही मिलता है और हम इस को देख चुके हैं।
मुनिश्री कल्याणविजयजी इस विषय में कुछ और साक्षी भी देते हैं। आप लिखते हैं-" पाटन के ताड़पत्रीय पुस्तक भंडार में, ताड़पत्र पर लिखे हुए एक प्रकरण (लगभग चौदहवीं सदी में लिखे हुए इस प्रकरण का नाम मालूम नहीं हुआ) में, हमने एक प्राकृत गाथा पढ़ी थी, जिसका अाशय यह हैकालकसूरि ने प्रथमानुयोग में जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, अादि के चरित्र और उनके पूर्वभवों का वर्णन किया
और लोकानुयोग में बहुत बड़े निमित्तशास्त्र की रचना की। xxx भोजसागरगणि नामक जैन विद्वान् ने संस्कृतभाषा में रमल-विद्या-विषयक एक ग्रंथ लिखा है। उसमें उन्हों ने लिखा है कि पहले-पहल यह विद्या कालकाचार्य के द्वारा यवन-देश से यहाँ लाई गई थी। किन्तु रमल-विद्या को यवन-देश से चाहे कालकाचार्य लाए हों या न भी लाए हों; पर इससे तो इतना सिद्ध ही है कि निमित्त अथवा ज्योतिष-विद्या के जैन विद्वान् लोग कालकाचार्य को अपने पथ का आदि-पथिक समझते थे।"१०२. ..मुनिजी लिखते हैं-"आर्य कालक दिग्गज विद्वान् के अतिरिक्त एक क्रांतिकारी पुरुष भी थे। विद्वत्ता के कारण उनकी जितनी प्रसिद्धि है उस से कहीं अधिक उनके घटनामय जीवन से है।xx आर्य कालक का प्रत्येक जीवन-प्रसङ्ग साधुस्थिति के सामान्य जीवन-लक्षण से कुछ आगे बढ़ा हुअा है। "१०३
कालक के जीवन की घटनाओं में जो दो तत्त्व सर्वसाधारण हैं, वे सब घटनाओं में हैं-एक इनका निमित्तज्ञान और दूसरा उनका क्रान्तिकारी, साहसिक नीडर जीवन।
१०१. द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ६६-६७. १०२. द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १०५. १०३. वही, पृ० १०५.
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