________________
पंपयुग
५९
और उनके ग्रंथ से बहुत से अंशों को हू-ब-हू लेकर वि० सं० २६४५ में कवि पद्मसागर ने भी एक धर्मपरीक्षा की रचना की थी, जो कि मुद्रित हो चुकी है 1 " वृत्तविलास की धर्मपरीक्षा के अभ्यासियों को अमितगति की धर्मपरीक्षा का परिचय देना आवश्यक है, क्योंकि वृत्तविलास ने अमितगति के ग्रंथ के आधार पर ही अपने ग्रंथ की रचना की है । अमितगति एक प्रौढ़ कवि थे । संस्कृत भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था। वे आशुकवि भी थे । संस्कृत में उन्होंने कई ग्रंथ रचे हैं । डा० उपाध्ये का अनुमान है कि जयराम के प्राकृत ग्रंथ का अनुकरण करके ही अमितगति ने अपनी संस्कृत धर्मपरीक्षा को रचा होगा ।
धर्मपरीक्षा की रचना-प्रक्रिया का पूर्णरूपेण अनुकरण करनेवाला एक ग्रंथ और है । उसका नाम धूर्ताख्यान है । यह ग्रंथ मुद्रित हो चुका है । धूर्ताख्यान प्राकृत भाषा का एक लघुकाय ग्रन्थ है । उसके रचयिता हरिभद्र हैं हरिभद्र एक महान् कवि हैं । उनका काल ७वीं शताब्दी है । उन्होंने संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं में अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की है । हरिभद्र एकविचक्षण कवि ही नहीं थे अपितु अप्रतिम नैयायिक तथा कुशल कथाकार भी थे । हरिभद्र ने एक ही तरह की विविध कथाओं का वैदिक पुराणों से संग्रह कर उन कथाओं की असंबद्धता को स्पष्ट किया है । असंबद्ध कथाओं एवं उन पर विश्वास करनेवालों के अंधविश्वास का उपहासात्मक विवरण हरिभद्र ने अपनी इस रचना में बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया है ।
भारतीय वाङ्मय में पूर्णतया उपहासपरक कृतियाँ दुर्लभ ही हैं । नाटकों एवं धर्मग्रंथों में भी कहीं-कहीं उपहासात्मक प्रसंग पाये जाते हैं, किन्तु धूर्ताख्यान में सहरा शुद्ध, बौद्धिक एवं उपहासपरक ग्रंथ प्राचीन भारतीय वाङ्मय दूसरा नहीं है । धर्माभिनिवेश को छोड़कर प्राचीन वाङ्मय के अभ्यासियों के लिए यह एक दुर्लभ रत्न है । २ धूर्ताख्यान की भाषा सुगम एवं प्राचीन है । वृत्तविलास की धर्मपरीक्षा की पृष्ठभूमि को स्पष्ट रूप से समझने के लिए अमितगति की धर्मपरीक्षा तथा हरिभद्र के धूर्ताख्यान का परिशीलन आवश्यक है ।
वृत्तविलास की धर्मपरीक्षा का प्रारंभ इस प्रकार होता है - मनोवेग
१. 'प्रबुद्ध कर्णाटक' रजतजयंती अंक में प्रकाशित डा० ए० एन० उपाध्ये का धर्मपरीक्षा सम्बन्धी लेख देखें ।
२. एदतथं प्रबुद्ध कर्णाटक रजत जयंती अंक देखें ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org