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________________ कन्नड जैन साहित्य का इतिहास दृष्टान्त रूप में ले लिया है। नेमिनाथपुराण की कथावस्तु में केवल नेमिनाथ का चरित्र जैन परम्परा के अनुसार वर्णित है । शेष बलदेव-वासुदेव का चरित्र वैदिक भागवत कथा से, कौरव-पाण्डवों का चरित्र वैदिक महाभारत की कथा से न्यूनाधिक मिलता है । यहां उल्लेखनीय है कि जहां वैदिक पुराण में देवकी के विवाह के पूर्व वसुदेव के चरित्र के सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती है, वहाँ नेमिनाथपुराण में इस प्रसंग पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। विस्तार के भय से वह यहां पर नहीं दिया जा रहा है। दोड्डय्य (लगभग ई० सन् १५५०), मंगरस ( ई० सन् १५०८ ) आदि कवियों ने अपनी कृतियों में कर्णपार्य की 'वीरेशचरित्र' नामक और एक कृति का उल्लेख किया है। किन्तु वह कृति अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है । सोमनाथ __इन्होंने कल्याणकारक नामक वैद्यक ग्रंथ कन्नड में लिखा है। मालूम होता है कि इन्हें 'विचित्रकवि' नामक उपाधि प्राप्त थी। सोमनाथ ने अपनी रचना में लिखा है कि मेरे इस ग्रंथ का संशोधन सुमनोबाण तथा अभयचन्द्र सिद्धान्ती ने किया है । इस उल्लेख से स्पष्ट है कि सोमनाथ सुमनोबाण का समकालीन था। सुमनोबाण का काल लगभग ई० सन् १९५० है । सोमनाथ के इस , काल की पुष्टि श्रवणबेळगोळ के लगभग ११२५ ई. के शिलालेख नं० ३८४ से भी होती है। लेख में गंगराण के पुत्र बोप्प के गुरु माधवचन्द्र का उल्लेख है। इन्हीं माधवचन्द्र की स्तुति सोमनाथ ने अपने ग्रंथ में की है। इसलिए श्री आर० नरसिंहाचार्य के मतानुसार सोमनाथ का काल लगभग ११४० ई. है । 'सोमनाथ का कल्याणकारक वैद्यक ग्रंथ आचार्य पूज्यपादकृत कल्याणकारक नाम के संस्कृत वैद्यक ग्रंथ का ही कन्नड अनुवाद है। सोमनाथ ने वाग्भट, चरक आदि के वैद्यक ग्रंथों से पूज्यपाद के 'कल्याणकारक' को श्रेष्ठ बतलाया है। साथ ही साथ इस में यह भी लिखा है कि कल्याणकारक की चिकित्सापद्धति में मद्य, मांस तथा मधु निषिद्ध हैं। ग्रंथ के प्रारम्भ में तीर्थकर चन्द्रप्रभ और सरस्वती के साथ माधवचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, अभयचन्द्र कनकचन्द्र पण्डितदेव की भी स्तुति की गई है। कवि सोमनाथ के द्वारा संस्तुत उपयुक्त माधवचन्द्र, अभयचन्द्र और कनकचन्द्र ये तीनों समकालीन थे। इनमें से माधवचन्द्र त्रिलोकसार के टीका. कार, मभयचन्द्र गोम्मटसार की मंदप्रबोधिका टीका के रचयिता और कनकनन्दि गोम्मटसार की रचना में सहायक प्रतीत होते हैं । यदि मेरा यह अनुमान Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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