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पंपयुग गया है। उसे शीलरत्नमण्डिता, शिष्टजनकल्पलता आदि विशेषणों से विभूषित किया गया है।
श्री आर० नरसिंहाचार्य का कहना है कि राजागण्डरादित्य, लक्ष्मण, लक्ष्मीधर, वर्धमान और शांत इस प्रकार पांच लड़के थे। कवि कर्णपार्य का आश्रयदाता लक्ष्म अथवा लक्ष्मण विजयादित्य का सहोदर लक्ष्मण ही है । परंतु डा० वेंकटसुब्बय्य श्री नरसिंहाचार्य के इस मत से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि गण्डरादित्य और लक्ष्मण का पिता गोवर्धन ( गोपण) भिन्नभिन्न व्यक्ति हैं। गण्डरादित्य को विजयादित्य नामक एक ही लड़का था। कर्णपार्य का आश्रयदाता लक्ष्मण केवल उसका मंत्री था। इसके दो भाई थे वर्धमान और शांत । वेंकटसुब्बय्य का यह कथन कर्णपार्य के नेमिपुराण के कथन से बिल्कुल मेल खाता है। इसलिए मुझे भी यही कथन समुचित लगता है । वेंकटसुब्बय्य का यह मत कि विजयादित्य का कोई सहोदर भाई नहीं था; ई. सन् ११६५ के एक्सांबि के अभिलेख से मेल नहीं खाता है क्योंकि उसमें स्पष्ट लिखा है कि विजयादित्य गण्डरादित्य का ज्येष्ठ पुत्र था। साथ ही साथ कवि कर्णपार्य के द्वारा प्रयुक्त रूपनारायण उपाधि से भी मानना होगा कि इसका आश्रयदाता लक्ष्मण राजवंशीय अवश्य था क्योंकि कवि ने गण्डरादित्य तथा विजयादित्य के लिए भी इसी उपाधि का प्रयोग किया है ।
नेमिनाथपुराण के सम्पादक एच० शेषअय्यंगार ने इसकी प्रस्तावना में अन्यान्य स्थलों के कई शिलालेखों का हवाला देकर यह सिद्ध किया है कि उन शिलालेखों में प्रतिपादित राजा विजयादित्य और कवि कर्णपार्य द्वारा नेमिनाथ पुराण में उल्लिखित विजयादित्य ये दोनों अभिन्न हैं। इस विजयादित्य का काल ई० सन् ११४३ से ११६४ तक होना चाहिए। अब तक हमने कर्णपार्य के काल के सम्बन्ध में विचार किया। अब देखना यह है कि कर्णपार्य का जन्मस्थल कौन-सा है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि इसने अपनी कृति में 'कहीं भी अपने जन्मस्थल, वंश और माता-पिता आदि का उल्लेख नहीं किया है । ऐसी अवस्था में कवि के जन्मस्थल, वंश आदि के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
नेमिनाथ के समवसरण के वर्णन में तीर्थकर नेमिनाथ द्वारा धर्मप्रचारार्थ
१. मैसूर आर्कोलाजिकल रिपोर्ट-१९१६, पृष्ठ ४८-५० । २. नेमिनाथपुराण, आश्वास १, पच ३० ।
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