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मराठी जैन साहित्य का इतिहास
में प्रकाशित हुआ है । महावीरचरित्र (१९३१ ) तथा तीर्थवन्दना ये आपकी विस्तृत पुस्तकें भी पठनीय हैं । आपने 'अज्ञात' उपनाम से साहित्यरचना की है ।
बाबगौंडा भुजगौंडा पाटील
बेळगांव-सांगली विभाग में दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा के नेताओं में आप प्रमुख थे। सभा के मुखपत्र प्रगति आणि जिनविजय का आपने कुछ वर्ष सम्पादन किया । ऐतिहासिक जैन वीर ( १९३४ ) तथा दक्षिण भारत व जैनधर्म ( १९३८ ) आपके ये ग्रन्थ मराठी समाज को जैन इतिहास का परिचय कराने में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हुए । रत्नकरण्ड का आप का संस्करण ( १९४३ ) अनुवाद के साथ मौलिक विवेचन से भी अलंकृत है । अहिंसा ( १९४६ ) तथा महावीरवाणी ( १९५६ ) आपकी अन्य रचनाएँ हैं ।
आप्पा भाऊ मगदूम
सांगली की वीर ग्रन्थमाला के संचालक के रूप में आपने जैन समाज में इतिहास की अभिरुचि उत्पन्न करने में प्रशंसनीय योग दिया । नेमिसागरचरित ( १९३४ ); सप्त सम्राट ( १९३६ ), जैन वीर स्त्रियाँ ( १९३६ ), चौदा रत्ने ( आचार्य-जीवन-परिचय ) ( १९४१ ) तथा वनराज ( १९४५ ) ये आपकी प्रमुख कृतियां हैं । शान्तिनाथ यशवंत नान्द्रे
आपने सेठ रावजी सखाराम दोशी तथा आचार्य शान्तिसागर के जीवन-चरित लिखे थे । कथाको मुदी ( १९३६ ) में सम्यक्त्व के पालन के कथारूप उदाहरण आपने सरल भाषा में अंकित किये थे । जम्बूकुमार की विरक्ति ( १९५९ ) तथा सती चम्पावती ( १९६३ ) आपकी अन्य सरल कथा-रूप पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं ।
सुमेर जैन
सोलापुर गुरुकुल से ( और बाद में बाहुबली गुरुकुल से ) प्रकाशित मासिक पत्र सन्मति के सम्पादन में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा । गम्भीर और ललित दोनों शैलियों पर इनका अधिकार है । जटायु नामक निबन्ध संग्रह में इनके विचारोत्तेजक और मनोरंजक लेख संकलित हुए हैं । वर्धमान महावीर ( १९५८ ), सम्राट करकंडु ( १९६४ ), अमर कथा (१९७०) ये प्राचीन
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