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वर्तमानकालीन मराठी जैन साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ २३७० और १२ मराठी के हैं । तत्त्वार्थसूत्र ( १९०५ ), प्रतिक्रमण ( १९१३ ) तथा षट्पाहुड ( १९२८) इन ग्रन्थों के अनुवाद तथा भारती सचित्र बालबोध छात्रोपयोगी पाठ्य पुस्तक के दो भाग ये नाग महोदय की प्रकाशित पुस्तकें हैं। कल्लाप्पा भरमाप्पा निटवे
ये कोल्हापुर के जैनेन्द्र मुद्रणालय के संचालक थे । सन् १८९८ में इन्होंने जैनबोधक का सम्पादक पद स्वीकार किया तथा लगभग १८ वर्ष तक इस मासिक पत्र के माध्यम से कई महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रंथों का मराठी अनुवाद प्रकाशित किया। समन्तभद्राचार्यकृत आप्तमीमांसा, कुन्दकुन्दाचार्यकृत पंचास्तिकाय तथा रयणसार, अमितगति आचार्यकृत श्रावकाचार, सोमसेनभट्टारककृत त्रैवणिकाचार, अज्ञातकर्तृक सम्यक्त्वकौमुदी, पण्डित आशाधरकृत सागारधर्मामृत तथा जिनसेनाचार्यकृत महापुराण ये आपके द्वारा रूपान्तरित ग्रन्थ हैं। श्रावकों के नित्यकर्म-पूजा आदि का वर्णन क्रियामंजरी पुस्तक में आपने संकलित किया था। तात्या नेमिनाथ पांगळ
ये बार्शी के प्रतिष्ठित विद्वान् थे। इनके पितामह अनन्तराज ने मराठी में कई भक्तिपूर्ण पदों की रचना की थी। रत्नत्रयमार्गप्रदीप ( १९०५) पुस्तक में उनके पुत्र ने ये पद संकलित किये थे। तात्यासाहब ने पितामह की इस परम्परा को कायम रखा। पंचकल्याणिक तथा सती अनन्तमती (१९०६) इनकी प्रारम्भिक काव्य रचनाएं हैं। कुन्दकुन्दाचार्यचरित्र में आपने भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद की पांच शताब्दियों का जैन समाज का इतिहास संकलित किया था ( १९०७) । वन्दे जिनवरम् ( प्रारम्भ १९०८) मासिक पत्र का सम्पादन आपने कई वर्ष तक किया। सामाजिक प्रगति और ऐतिहासिक ज्ञान की वृद्धि के लिए उपयोगी महत्त्वपूर्ण लेख इस पत्र में प्रकाशित हुए थे। तीर्थकरचरित्र ( १९०९ ) में गुणभद्राचार्य के उत्तरपुराण का संक्षिप्त रूपान्तर आपने प्रस्तुत किया था। पूना की वसन्तव्याख्यानमाला में दिये हुए आपके भाषण को 'जैनधर्म' नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया था ( १९२१)। इसी पुस्तक में लोकमान्य तिलक का जैनधर्म विषयक भाषण भी संकलित है। जीवराज गौतमचन्द दोशी
सोलापुर के दोशी परिवार के साहित्यानुरागी श्रीमानों में सेठ हिराचन्दः
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