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________________ प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्व २३३ माणिक ये भी भ० पद्मनन्दि के शिष्य थे। इनकी तीन छोटी रचनाएं उपलब्ध हैं-गुरु-आरती, नवग्रह आरती तथा देवी पद्मावती लावणी । इन तीनों की पद्य-संख्या ५-५ है। जिनसेन ये कोल्हापुर के भट्टारक थे। मराठी में इनके तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैं । जम्बूस्वामीपुराण में ११ अध्याय हैं। संस्कृत में सकलकीर्ति द्वारा रचित ग्रन्थ के आधार पर जम्बूस्वामी की कथा इसमें सुन्दर शब्दों में वर्णित है। सकलभूषण की संस्कृत रचना के आधार पर उपदेश रत्नमाला नामक दूसरा विस्तृत ग्रन्थ जिनसेन ने शक १७४३ (सन् १८२१) में लिखा । श्रावकों के छह कर्मों का अच्छा वर्गन इसमें है। इनका तीसरा ग्रंथ पुण्यास्रव कथाकोश शक १७५१ में पूर्ण हुआ था। इसमें नागकुमार, सुकुमार, चारुदत्त, भविष्यदत्त आदि की ७९ कथाएं विस्तार से ग्रथित हैं। यह ग्रंथ एक कन्नड रचना के आधार पर लिखा गया था। लक्ष्मीसेनशिष्य कारंजा के सेनगण के भट्टारक पद पर शक १७५४ ( सन् १८३२ ) में लक्ष्मीसेन बैठे थे । इस समारोह का वर्णन उनके एक शिष्य ने ५ कडवकों के एक गीत में किया है । इस कवि ने अपने नाम का उल्लेख नहीं किया है। ठकाप्पा इनका एक मात्र ग्रन्थ पांडवपुराण शक १७७२ ( सन् १८५०) में १. 'देवीची लावणी' यह गीत जिनदास चवडे, वर्धा, द्वारा सन् १९१३ में प्रकाशित पद्मावतीची गाणी इन पुस्तक में मिला, शेष दो हमारे हस्तलिखित संग्रह में हैं। २. प्र. कल्लाप्पा उपाध्याय, नान्दणी ( कोल्हापुर), वर्ष मालूम नहीं हो सका। ३. प्र. कल्लाप्पा निटवे, कोल्हापुर, सन् १८९८। ४. प्रा० म०, पृष्ठ १०५ । ५. यह गीत हमने अनेकान्त दमासिक, दिल्ली, के वर्ष १८ (पृ. २२३ ) में प्रकाशित किया था। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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