SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० तमिल जैन साहित्य का इतिहास पू० ५२७ में हुआ । जैन ग्रन्थों के अनुसार उनकी आचार्य परंपरा निम्न क्रम से है - (श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार ) महावीर स्वामी गौतम सुधर्मा I जम्बूस्वामी ↓ प्रभव ↓ शय्यम्भव ↓ यशोभद्र ↓ सम्भूति विजय Jain Education International भद्रबाहु (दिगम्बर मान्यता के अनुसार ) - महावीर स्वामी ↓ गौतम T सुधर्मा ↓ जम्बूस्वामी ↓ विष्णुनन्दी नंदिमित्र ↓ अपराजित ↓ गोवर्धन ↓ भद्रबाहु दक्षिण में प्रवेश १ दिगम्बर परंपरा की प्रचलित अनुश्रुति के आधार पर उपर्युक्त आचार्य परम्परा के अन्तिम जैन आचार्य भद्रबाहु ने दक्षिण प्रदेश में सर्वप्रथम प्रवेश किया था । भद्रबाहु मगधनरेश चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु थे । उस समय उत्तर भारत में बहुत बड़ा अकाल पड़ा । ऐसी विकट दशा में वहाँ विपुल साधुसंघ का भरण-पोषण कठिन हो गया, अतः आचार्य भद्रबाहु ने अपने अनेक शिष्यों के साथ मगध छोड़कर दक्षिण को प्रस्थान किया और 'श्रवणबेळकुळम् ' नामक स्थान पर आकर ठहर गये । भद्रबाहु ने वहाँ से अपने शिष्य विशाख को चोल और पांडिय नरेशों के शासनक्षेत्र तमिलनाडु में जैनधर्म का प्रचार करने के हेतु भेजा था । इन्हीं आचार्य विशाख के सान्निध्य में चंद्रगुप्त मौर्य ने विधिवत् समाधि मरण प्राप्त किया था । उक्त तथ्यों की पुष्टि जैन ग्रंथों एवं शिलालेखों के आधार पर की जाती है । १. यह स्थान मैसूर से ६२ मील और चन्नरायपट्टण से करीब अठारह मील की दूरी पर है । कन्नड में इसका नाम 'श्रमणबेळगोळ' है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy