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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास है। इस पर सूरचन्द्र ( १७वीं शती) कृत एक अन्य टीका का भी उल्लेख मिलता है।
अन्य महाकाव्यों में भट्टिकाव्य पर कुमुदानन्दकृत सुबोधिनी एवं शिशुपालवध महाकाव्य पर चारित्रवर्धन (१५वीं शता० ) एवं धर्मरुचि ( १७वीं शती) कृत टीकाएं तथा ललितकीर्ति (१७वीं शती) कृत सन्देहध्वान्तदीपिका' टीका मिलती है। समयसुन्दरोपाध्याय ने भी इस काव्य के तृतीय सर्ग पर टीका लिखी है । इसी तरह मोहर्ष के नैषधीयचरित काव्य पर ४ टोकाएं मिलती हैं। इनमें सबसे प्राचीन वि० सं० ११७० में लिखी गई मुनिचन्द्रसूरिकृत टोका है। दूसरी टीका वि० सं० १५११ में चारित्रवर्धन (खरतरगच्छ ) ने तथा तीसरी जिनरानसूरि (खरतरगच्छ, १७वीं शती) ने लिखो। तपागच्छीय रत्नचन्द्रगणि (१७वीं शती) कृत सुबोधिका नामक टीका भी उक्त काव्य पर मिलती है।
अन्य जैनेतर काव्यों में से 'नलोदय' पर आदित्यसूरिकृत टीका, राघवपाण्डवीय' पर पद्यनन्दि, पुष्पदन्त और चारित्रवर्धनकृत टीकाएं, खण्डप्रशस्ति ( हनुमत्कृता) पर धर्मशेखरसूरि (वि० सं० १५०१) कृत वृत्ति, गुणविनयकृत सुबोधिका (वि० सं० १६४१) एवं अज्ञातकर्तृक वृत्ति, घटकपरकाव्य पर शान्तिसूरि एवं पूर्णचन्द्रकृत टीकाएं, वृन्दावनकाव्य, शिवभद्रकाव्य और राक्षसकाव्य पर शान्तिसूरिकृत टीकाएं, दुर्घटकाव्य पर पुण्यशीलमुनिकृत टीका और जगदाभरणकाव्य पर ज्ञानप्रमोदकृत टीका मिलती है।
चम्पूकाव्यों में दमयन्तीचम्पू पर प्रबोधमाणिक्यकृत टिप्पणी तथा चण्डपालकृत टीका एवं नलचम्पू पर गुणविनयगणि कृत टीका मिलती है।
१. वही, पृ० ३१४; मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृतिग्रन्थ,
द्वितीय खण्ड, पृ. २५. २. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि भष्टम शताब्दी स्मृतिग्रन्थ, द्वितीय खण्ड, पृ० २५. ३. जिनरत्नकोश, पृ० २१९. ४. वही, पृ० १२.. ५. वही, पृ० १०.. ६-७. वही, पृ० ११, ३२९, ३६४, १८३. ८. वही, पृ०.४६५. ९. वही, पृ. १६६.
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